Akbar Birbal ki Kahani:- Here I’m sharing with you the top Akbar Birbal stories in Hindi which is really amazing and awesome these Akbar Birbal ki Kahani will teach you lots of things and gives you an awesome experience. You can share with your friends and family and these moral stories will be very useful for your children or younger siblings.
- तीन गधों का बोझ
- मनहूस कौन?
- बादशाह की अंगूठी
- कौन है चोर?
- लालची नाई
- आम के कद्रदान
- अंधों की सूची
- हथेली पर बाल
- तम्बाकू की लत
- मोटा होने की वजह
- देने वाले के हाथ
- अजीब इनाम
- समुद्र की शादी
- सबसे सुंदर बच्चा
- जिंदा या मुर्दा
- कठिन काम
- सज़ा
तीन गधों का बोझ with Moral Akbar Birbal Story
एक दिन बादशाह अकबर अपने महल के निकट ही बहने वाली यमुना नदी में नहाने के लिए गए। उनके साथ बीरबल और उनके दो बेटे भी थे। चारों लोग बातें करते हुए थोड़ी ही देर में नदी के किनारे जा पहुंची।
स्नान करने के लिए नदी में घुसने से पहले बादशाह और उनके दोनों बेटों ने अपने कपड़े उतारकर बीरबल को दे दिए। फिर वे दोनों नदी में उतरकर स्नान करने लगे।
बीरबल कपड़े हाथ में लेकर नदी के बाहर ही खडे रहे और उनके स्नान करके नदी से बाहर आने का इंतजार करने लगे। नदी में नहाते हुए अकबर को अचानक बीरबल से मजाक करने की सूझी।
वे मुस्कुराते हुए बीरबल से बोले, “बीरबल, कपड़ों का बोझ उठाए हुए दिक्कत तो जरूर हो गया है।” रही होगी। और हो भी क्यों न भला? तुम पर कम से कम एक गधे का बोझ तो हो ही बीरबल भला चुप कहाँ रहने वाले थे वे छूटते ही बोले,
“आपने बिल्कुल सही फरमाया, हुजूर! बस, अंतर यह है कि मुझ पर इस समय एक नहीं बल्कि तीन गधों का बोझ है।” बीरबल की बात सुनकर बादशाह लाजवाब रह गए और मन ही मन उनकी तारीफ किए बगैर नहीं रह सके।
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मनहूस कौन? Best Kids Akbar Birbal Stories in Hindi
बादशाह अकबर के दरबार में राधूमल नाम का एक दरबारी था। वह खुद को बड़ा विद्वान समझता था, लेकिन हकीकत यह थी कि वह एक मूर्ख और अंधविश्वासी व्यक्ति था।
एक दिन वह बादशाह को बताने लगा कि नगर में मनोहर नाम का एक ऐसा व्यक्ति है, जिसे देखने वाले पर दुर्भाग्य टूट पड़ता है। जो कोई भी उसकी शक्ल सुबह-सुबह देख ले, उसका पूरा दिन खराब हो जाता है।
“पूरी बात खुलकर बताओ,” बादशाह राधूमल से बोले। “महाराज, पूरा नगर यह बात जानता है। पता नहीं आपको यह बात अभी तक पता कैसे नहीं चली? अगर आप चाहें तो मैं आपके सामने बहुत से ऐसे लोगों को पेश कर सकता हूँ,
जिनका पूरा दिन बस इसीलिए खराब हो गया, क्योंकि उन्होंने सुबह-सुबह मनोहर की शक्ल देख ली थी।” राधूमल इस तरह बोला, जैसे बहुत बड़ी बात बता रहा हो। “क्या बेवकूफी भरी बात कर रहे हो?” बादशाह ने बड़े आश्चर्य से कहा,
“इस तरह की बात सम्भव ही नहीं है। कल मैं उसे सुबह-सुबह बुलाकर उससे मिलूँगा। इस तरह दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।”
यह कहते हुए बादशाह ने मनोहर को अगली सुबह अपने हुजूर में पेश होने का हुक्म जारी कर दिया। अगले दिन बादशाह मनोहर से अपने शाही बगीचे में मिले। जिस समय वे मनोहर से बातें कर रहे थे,
उसी समय उन्हें खबर मिली कि उनके एक गोदाम में आग लग गई है। नुकसान का अंदाज लगाने के लिए बादशाह ने तुरंत अपने कुछ आदमियों को भेजा। मनोहर से मुलाकात करने के बाद जब वे अपने महल को लौट रहे थे,
तभी अचानक महल की सीढ़ियों पर उनका पैर फिसल गया और वे गिर पड़े। उन्हें काफी चोट भी आई। तुरंत शाही हकीम को बुलाया गया और उसने उन्हें दवा दी। ‘आज यह सुबह से हो क्या रहा है?’ बादशाह सोच रहे थे।
कुछ देर आराम करने के बाद उन्होंने भोजन किया और फिर महल के दीवान-ए-खास में जा पहुँचे। थोड़ी देर में वहाँ राधूमल आ पहुँचा। जब बादशाह ने उसे सुबह से घटी सारी घटनाओं के बारे में बताया तो वह कहने लगा,
“जहांपनाह, मैंने कहा था न कि जो मनोहर की शक्ल सुबह-सुबह देख लेता है, उसका पूरा दिन बड़ी मुश्किल से निकलता है।” उस दिन की घटनाओं की वजह से बादशाह को भी राधूमल की बातों पर विश्वास होने लगा।
वे सोचने लगे, ‘हो न हो, राधूमल की बातों में कुछ सच्चाई जरूर है। पहले तो मैंने उसकी बात पर भरोसा नहीं किया था, लेकिन आज की घटनाओं से यह बात साबित हो गई है।’ उन्होंने मनोहर को कारागार में डालने का फैसला किया,
जिससे उसकी शक्ल देखने की वजह से किसी और को इसका दुष्परिणाम न भुगतना पड़े। उन्होंने तुरंत नगर कोतवाल को तलब किया और उसे मनोहर को पकड़कर दरबार में पेश करने का हक्म दिया।
बादशाह का हुक्म मिलते ही कोतवाल सिपाहियों को साथ लेकर मनोहर के घर जा पहुँचा और उसे गिरफ्तार कर लिया। मनोहर ने लाख गुहार लगाई कि वह बेकसूर है, लेकिन कोतवाल ने उसकी एक न सुनी।
कोतवाल मनोहर को लेकर दरबार की ओर जा ही रहा था कि तभी बीरबल उसे मिल गए। “क्या बात है, मनोहर?” बीरबल ने पूछा, “ये लोग तुम्हें पकड़कर क्यों लिए जा रहे हैं?” रोते हुए मनोहर ने बीरबल से सारी बात कह सुनाई।
तब बीरबल उसके कान में बोले, “अगर बादशाह का हुक्म न होता, तो मैं तुम्हें अभी छुड़वा देता। खैर, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। बादशाह सलामत के सामने पहुँचकर उनसे वैसा ही कहना, जैसा मैं तुम्हें बता रहा हूँ।
बादशाह तुम्हें आजाद कर देंगे।” यह कहकर बीरबल मनोहर के कान में कुछ कहने लगे। फिर कोतवाल मनोहर को लेकर दरबार में पहुँचा। दरबार में मनोहर पर मुकदमा शुरू हुआ। बादशाह बोले,
“यह साबित हो चुका है कि सुबह-सुबह तुम्हारी शक्ल देखना हर किसी के लिए दुर्भाग्यशाली है। अगर तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है, तो बोलो।” मनोहर बोला, “जहांपनाह,
मेरी शक्ल सुबह-सुबह देखकर कुछ नुकसान उठाने की वजह से आप मुझे कारावास में डाल रहे हैं। थोड़ा बहुत माली नुकसान आप जैसे अजीम शहंशाह के लिए कोई मायने नहीं रखता।
रही शारीरिक चोट की बात, तो वह भी कुछ दिनों में ठीक हो जाएगी। लेकिन मुझे तो आपकी शक्ल देखने का नतीजा अपने कारावास के रूप में भुगतना पड़ रहा है। अब आप ही बताइए,
ज्यादा मनहूस कौन है?” मनोहर की बात सुनकर बादशाह समझ गए कि यह बात कहने का सुझाव उसे बीरबल ने ही दिया होगा। उन्होंने उसे मुक्त कर दिया। वह बादशाह और बीरबल का गुणगान करता हुआ वहाँ से चला गया।
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बादशाह की अंगूठी Akbar Birbal ki Kahani or Stories in Hindi
एक दिन बादशाह अकबर बीरबल के साथ टहल रहे थे। बीरबल के साथ रोज घूमने जाना उनकी आदत थी। एक खेत से होकर गुजरते समय उन्होंने वहाँ एक पुराना कुआँ देखा। “चलो, देखते हैं उस कुएँ में क्या है?”
बादशाह बीरबल से बोले। फिर दोनों ही उस कुएँ के पास जा पहुँचे और उसमें झाँकने लगे। वह बहुत ही गहरा कुआँ था, लेकिन उस समय वह सूखा हुआ था। “यह गहरा कुआँ कई सालों से बिना उपयोग के पड़ा हुआ है।
मुझे नहीं लगता कि अगर इसमें कोई चीज डाल दी जाए, तो कभी उसे निकाला भी जा सकता है। खास तौर पर कुएँ के अंदर घुसे बिना उस वस्तु को निकाला जाना बिल्कुल संभव नहीं है।” बादशाह ने कहा।
“नहीं, ऐसी बात नहीं, ऐसा हो तो सकता है, लेकिन इसमें कुछ समय जरूर लगेगा।” बीरबल बोले। बीरबल की बात सुनकर बादशाह ने अपनी अंगूठी उतारी और उसे कुएँ में फेंकते हुए बोले, “देखते हैं तुम इसे निकाल पाते हो या नहीं।
तुम जितना समय चाहो, लगा सकते हो। तुम्हें इस काम के लिए जितने पैसे की आवश्यकता हो, वह तुम सरकारी खजाने से ले सकते हो।” यह कहकर वे वापिस मुड़ गए।
उधर बीरबल ने वापिस मुड़ते समय बादशाह की नजर बचाकर गाय का कुछ गोबर कुएँ में डाल दिया। इसके बाद वे नगर में वापिस आ गए। कुछ दिनों बाद, बादशाह और बीरबल टहलते हुए फिर वहीं पहुंच गए।
बादशाह को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि उस समय वह कुआँ पानी से लबालब भरा हुआ था। गाय के गोबर का एक टुकड़ा पानी पर तैर रहा था। “अरे।” बादशाह आश्चर्य से बोले, “यह कुआँ पानी से कैसे भर गया?
बरसात तो अभी हुई नहीं है।” “इसमें पानी मैंने भरवाया था, हुजूर।” बीरबल ने जवाब दिया। “क्यों?” बादशाह ने सवाल किया। इसके जवाब में बीरबल ने वह गोबर का टुकड़ा उठाकर उसे पलटा। उसकी पिछली तरफ अंगूठी थी।
वह अंगूठी निकालकर बीरबल ने उसे साफ पानी से धोया और फिर बादशाह को पेश कर दिया। वे बादशाह से बोले, “जिस दिन आपने मुझसे कुएँ में घुसे बिना अंगूठी निकलवाने को कहा था,
उसी दिन, मैंने यह गोबर ठीक अंगूठी के ऊपर फेंक दिया था। बाद में मैंने इसमें पानी भरवा दिया, जिससे यह गोबर का सूखा हुआ टुकड़ा ऊपर आकर तैरने लगा।” बीरबल के इस कारनामे से बादशाह इतने खुश हुए कि उन्होंने वह अंगूठी बीरबल को ही पुरस्कारस्वरूप दे दी।
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कौन है चोर? Interesting Akbar Birbal Stories in Hindi for Children
एक बार एक सेठ की हवेली में चोरों ने सेंट लगाई और कीमती सामान पर हाथ साफ कर गए। सेठ को शक था कि उस चोरी में हो न हो, उसके घर के नौकरों का ही हाथ है। वह सारे नौकरों को एक जगह इकट्ठा करके बोला,
“अगर दोषी व्यक्ति अभी अपना अपराध स्वीकार कर ले, तो मैं उसे क्षमा कर दूंगा। बाद में किसी को बख्शा नहीं जाएगा।” लेकिन इसके बाद भी किसी ने अपना अपराध नहीं माना।
तब वह सेठ अपने मित्र बीरबल के पास जा पहुँचा और उन्हें सारी बात कह सुनाई। उसकी बात सुनकर बीरबल सोच में पड़ गए। फिर उन्होंने चोर को खोज निकालने के लिए एक योजना बनाई।
वे सेठ के साथ उसके घर जा पहुँचे और सभी नौकरों को एक स्थान पर बुला लिया। फिर वे तेज आवाज में उनसे बोले, “मुझे तो तुम लोग जानते ही हो। किसी भी अपराधी को मैं कभी नहीं बख्शता हूँ।
पिछली रात तुम्हारे मालिक की हवेली में डकैती पड़ी थी। उनका विश्वास है कि डकैती में तुममें से ही किसी का हाथ है। तुममें से जो भी गुनाहगार है, वह खुद बाहर आ जाए।” लेकिन कोई भी नौकर आगे नहीं आया।
तब बीरबल बोले, “कोई बात नहीं। मेरे पास असल चोर को खोज निकालने का एक रास्ता है।” यह कहते हुए वे सभी नौकरों के हाथ में एक-एक लकड़ी थमाकर बोले, “ये लड़कियां कोई साधारण वस्तु नहीं है, बल्कि इनमें जादुई क्षमता है।
इन सभी लकड़ियों की लम्बाई बराबर है। लेकिन कल सुबह तक चोर की लकड़ी को छोड़कर हर लकड़ी की लम्बाई अपने आप दो इंच कम हो जाएगी। कल मैं फिर आकर तुम सबकी लकड़ियाँ जाँचूंगा।
जिसकी लकड़ी छोटी नहीं मिली, वह खुद-ब-खुद चोर साबित हो जाएगा। अब तुम लोग जा सकते हो।” उस रात सभी बेकसूर नौकर तो चैन की नींद सोए, लेकिन चोर नौकर की नींद हवा हो गई थी।
वह पूरी रात लकड़ी के बारे में ही सोचता रहा था। आखिरकार, उसने इस मुसीबत से बचने का एक रास्ता खोजा। उसने लकड़ी को दो इंच काट दिया। अगले दिन वह उस लकड़ी को लेकर सेठ के घर जा पहुँचा।
अब उसे पकड़े जाने की कोई चिंता नहीं थी। तब तक बाकी नौकर भी पहुँच चुके थे। ठीक नौ बजे बीरबल वहाँ गए। उन्होंने सभी नौकरों को अपनी लकड़ियों का निरीक्षण कराने का हुक्म दिया।
बाकी नौकरों की लकड़ियाँ तो पिछले दिन जैसी ही थीं, लेकिन चोर की लकड़ी दो इंच छोटी हो गई थी। उन्होंने उसी नौकर को पंक्ति से बाहर खींच निकाला और सेठ से बोले, “मित्र, यही है चोर। अब तुम इसे जो चाहो सजा दो।”
नौकर सेठ के पैरों पर गिरकर क्षमा माँगने लगा, लेकिन सेठ ने उसे शहर कोतवाल के हवाले कर दिया। उसकी निशानदेही पर कोतवाल ने चोरी गई सारी दौलत बरामद कर ली।
इस तरह सेठ को अपना धन वापिस मिल गया। जब बीरबल ने सेठ को वह तरीका बताया जिसका सहारा लेकर उन्होंने चोर को खोज निकाला था, तो वह हैरान रह गया।
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लालची नाई Unique Kids Akbar Birbal ki Kahani
बादशाह अकबर का नाई बीरबल से बहुत जलता था। बीरबल को नुकसान पहुँचाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता था। एक दिन उसने बीरबल को अपने रास्ते से हटाने के लिए एक योजना बनाई।
एक दिन जब वह बादशाह की दाढी बना रहा था, तभी वह उनसे बोला, “हुजूरे आला, क्या आप इस धरती के बाद की जिंदगी पर भरोसा करते हैं?” “हाँ, करता हूँ।” बादशाह ने जवाब दिया।
“क्या आपके मन में कभी यह जानने की इच्छा नहीं हुई कि आपके पुरखे जन्नत में कैसे रह रहे हैं?” नाई ने पूछा। “मन में तो कई बार आया, लेकिन कैसे पता लगाऊँ? इसका कोई तरीका तो मुझे पता नहीं है।” बादशाह ने बताया।
“हुजूर, मैं जन्नत जाने का तरीका जानता हूँ। कुछ पहुंचे हुए महात्माओं ने मुझे यह तरीका बताया था। आप तो सिर्फ यह चुनाव कीजिए कि पुरखों की खोज-खबर लेने के लिए आप किसे भेजना चाहेंगे।
वह व्यक्ति निश्चय ही बहुत बुद्धिमान होना चाहिए।” नाई ने कहा। “बीरबल, और कौन? मैं उसी को जन्नत भेजूंगा,” बादशाह चहकते हुए बोले, “लेकिन एक बात तो बताओ। यह सब होगा कैसे?” “बहुत आसान है, हुजूर।
एक चिता जलाई जाएगी। उसमें बीरबल को बिठाकर उन्हें लकड़ियों से ढक दिया जाएगा। जब चिता धू-धू करके जलने लगेगी, तो उसके धुएँ के साथ बीरबल महाराज भी जन्नत पहुँच जाएँगे।” नाई होंठ चबाते हुए बोला।
बादशाह समझ गए थे कि नाई यह सब बकवास बीरबल को नुकसान पहुँचाने के लिए ही कर रहा है, लेकिन उन्हें बीरबल की काबिलियत पर पूरा भरोसा था। इसलिए उन्हें किसी बात की फिक्र नहीं थी।
उसी शाम, बीरबल को अपने महल में बुलाकर उन्होंने उन्हें सारी बताई। बीरबल ने हल्की मुस्कान के साथ पूरी बात सुनी। “देख लो, इस बार मुकाबला नाई महाराज से है।” बादशाह हँसे। “पछताएगा नाई, बहुत पछताएगा,”
बीरबल होंठ चबाते हुए बोले, “खैर, मैं चिता पर कुछ दिनों बाद चढूंगा। आप मुझे थोड़ा समय दीजिए।” बादशाह ने बीरबल को मुंह मांगा वक्त दे दिया। बीरबल ने अपने गुप्तचरों से उस चिता की जगह पता लगा ली,
जहाँ नाई ने उन्हें जलाने की योजना बना रखी थी। उन्होंने गुप्त रूप से उस चिता के नीचे से अपने घर तक एक सुरंग खुदवा ली। जब उनकी तैयारी पूरी हो गई तो उन्होंने घोषणा कर दी कि वे चिता पर चढ़ने के लिए तैयार हैं।
नाई खुद अपनी देखरेख में बीरबल को उस स्थल तक ले गया। वहाँ बीरबल उस चिता में जा बैठे। फिर चिता में आग लगा दी गई। बीरबल चुपचाप सुरंग से होते हुए अपने घर लौट आए। उधर नाई की खुशी की कोई सीमा नहीं थी।
वह यही समझ रहा था कि उसने अपनी चतुराई के बल पर बीरबल को ठिकाने लगा दिया है। बीरबल के विरोधी दरबारी भी बहुत खुश थे। उन्होंने राम दरबार में बीरबल का पद हथियाने की योजना बनानी भी शुरू कर दी थी।
अपने घर में कुछ हफ्ते गुजारने के बाद, बीरबल, एक दिन, अचानक, राजदरबार जा पहुँचे। घर में रहने के दौरान, उन्होंने न अपने बाल बनवाए थे और न ही दाढ़ी बनवाई थी।
उन पर नजर पड़ते ही बादशाह खुशी से सराबोर हो गए और उनका स्वागत करते हुए बोले, “आओ, बीरबल, आओ, जन्नत में हमारे रिश्तेदारों के क्या हाल हैं?” “जहांपनाह, जन्नत में सब कुछ ठीकठाक है। आपके रिश्तेदार भी मजे में हैं।
वहाँ आपके पिता और दादा आपके लिए दुआ करते हैं। वैसे तो जन्नत में सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं है। फिर भी एक समस्या जरूर है। वहाँ कोई नाई नहीं है।
आप खुद देख रहे होंगे कि मैं भी वहाँ रहकर न अपने बाल बनवा सका और न दाढ़ी। आपके पुरखों के बाल और दाढ़ी भी काफी बढ़ आए हैं। उन्होंने कहलवाया कि आप उनके लिए किसी अच्छे नाई को भेजें।”
बीरबल की बात सुनकर बादशाह मन ही मन हँसे वे बीरबल की योजना अच्छी तरह समझ रहे थे। वे तुरंत बोले, “हाँ हाँ, क्यों नहीं? मैं उनके लिए अपने शाही नाई को ही भेज दूंगा।”
यह कहते हुए बादशाह ने नाई को स्वर्ग जाने की तैयारी करने का हुक्म दिया। नाई ने खुद को ‘स्वर्ग’ भेजे जाने का जमकर विरोध किया, लेकिन बादशाह ने उसकी एक न सुनी। नाई उस दिन को कोस रहा था,
जब उसने बीरबल को जलाकर मारने की योजना बनाई थी। अगले ही दिन उसे जीवित ही चिता पर रखकर जला दिया गया। इस तरह बीरबल ने अपने विरोधी नाई से छुटकारा हासिल कर लिया।
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आम के कद्रदान Latest Kids Akbar Birbal ki Kahani
एक दिन बादशाह और बीरबल, दोनों ही एक साथ बैठे आमों का स्वाद ले रहे थे। बादशाह ने थोड़ी देर पहले ही दरबार खत्म किया था और अब वे अपना खाली वक्त बीरबल के साथ बिता रहे थे।
बादशाह को बीरबल के साथ समय गुजारना बेहद पसंद था। बीरबल बढ़िया चुटकुले और कहानियाँ सुनाकर बादशाह का मनोरंजन कर रहे थे। बीरबल की बातें सुनने में बादशाह को बहुत मजा आ रहा था।
आम खाकर वे उनकी गुठलियाँ मेज के नीचे फेंकते जा रहे थे। तभी बादशाह को बीरबल से मजाक करने की सूझी। उन्होंने चुपचाप अपने खाए आमों की गुठलियाँ बीरबल की ओर सरका दी फिर वे जोर से बोले,
“बीरबल, मुझे नहीं पता था तुम आम खाने में इतने उस्ताद हो। तुम तो आम इतनी तेजी से खा रहे हो, जैसे तुमने पहले कभी आम खाए ही न हों।” तब बीरबल ने मेज के नीचे देखा। उनकी ओर तो आम की गुठलियों का ढेर पड़ा था,
जबकि बादशाह की ओर एक भी गुठली नहीं थी। बीरबल समझ गए कि बादशाह मजाक में उन पर बीस साबित होने की कोशिश कर रहे हैं। वे तुरंत बोले,”बादशाह सलामत! ये बात सच है कि मुझे आम बेहद पसंद हैं,
लेकिन आप तो आमों के मुझसे भी बड़े कद्रदान हैं। मैंने तो आमों का गदा ही खाया है, लेकिन आपने तो उनकी गुठलियाँ भी खा ली हैं।” बीरबल की बात सुनकर बादशाह हैरानी से उनका मुँह ताकते रह गए। उनसे कोई जवाब देते न बन पड़ा.
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अंधों की सूची New Akbar Birbal ki Kahani
एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से राज्य में रहने वाले सभी अंधों की एक सूची बनाने को कहा। बीरबल जानते थे कि यह एक कठिन कार्य था, क्योंकि राज्य में अंधों की संख्या बहुत ज्यादा थी।
इतने सारे अंधों के बारे में पता करके उनकी सूची बनाना बड़ा कठिन काम था। फिर उनके पास और भी कई जरूरी काम थे और इस तरह की सूची तैयार करना उन्हें वक्त की बर्बादी ही लग रहा था।
कुछ देर टालमटोल करते रहने के बाद उन्होंने बादशाह से पूछा, “जहांपनाह, आप ऐसी सूची क्यों बनवाना चाहते हैं?” ‘बीरबल, मैं उन आंखों को कुछ देना चाहता हूँ।” बादशाह ने उत्तर दिया।
“लेकिन जहांपनाह, आपके राज्य में रहने वाले अंधों की तादाद बहुत ज्यादा है। सच पूछे तो आँख वालों की तुलना में अंधों की ही संख्या अधिक है।”
बीरबल ने सूची बनाने की बात को समाप्त करने के उद्देश्य से कहा। अकबर को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ। वे बोले, “मैं ऐसा नहीं मानता हूँ।
अगर तुम्हारी बात सही है, तो इसे मुझे साबित करके दिखाओ। मेरे ख्याल से तो मेरी हुकूमत में अंधों की तादाद कोई ज्यादा नहीं होगी।” बीरबल की बुद्धि बहुत तीव्र थी।
उन्होंने तुरंत ही अपनी बात को साबित करने का एक तरीका सोच लिया। दूसरे दिन वे बिना बुनी एक चारपाई लेकर बाजार में एक तरफ बैठ गए और उसे बुनने लगे।
साथ ही उन्होंने अपने एक सेवक को कागज और कलम लेकर अपने बगल में खड़े रहने को कहा। चूँकि वह बाजार था, इसलिए वहाँ लोगों का आना-जाना लगा ही रहता था।
बीरबल वैसे भी प्रसिद्ध व्यक्ति थे। जिसकी भी दृष्टि उनके ऊपर पड़ती थी, वह आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पाता था। बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक बीरबल को वहाँ इस प्रकार चारपाई बुनते देखकर लोगों का आश्चर्य में पड़ना स्वाभाविक ही था।
वे वहाँ जिज्ञासावश रुककर पूछते, “बीरबल महाराज, ये आप क्या कर रहे हैं?” बीरबल यह प्रश्न पूछने वाले को कोई उत्तर नहीं देते थे सिर्फ उनका सेवक प्रश्न करने वाले व्यक्ति का नाम और पता लिख लेता था।
लोग आपस में फुसफुसाने लगे, “बीरबल पागल हो गए लगते हैं। देखो तो कैसे अजीब ढंग से यहाँ बैठे चारपाई बुन रहे हैं, और पूछने पर कुछ बोलते भी नहीं। हमें तो समझ ही नहीं आ रहा, उनके इस तरह यहाँ बैठकर चारपाई बुनने का मकसद क्या है।”
शीघ्र ही यह बात जंगल की आग की तरह चारों ओर फैल गई। बीरबल के आस-पास लोगों का जमघट लग गया। बादशाह को भी बीरबल के इस विचित्र कारनामे की जानकारी मिली।
तब वे खुद वहाँ जा पहुँचे। वे भी बीरबल को उस अवस्था में देखकर आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सके। उन्होंने बिना देर किए पूछा, “बीरबल, यह क्या हो रहा है?”
बीरबल ने पहले की ही तरह बिना जवाब दिए, अपने सेवक को बादशाह का भी नाम सूची में लिख लेने का संकेत किया। इसके बाद वे चारपाई का काम छोड़कर उठे और अकबर से बोले, “जहांपनाह, अपने राज्य के कुछ अंधों की सूची मैंने बनाई है। यह आप खुद देख लें।”
ऐसा कहते हुए बीरबल ने सेवक द्वारा लिखे गए नामों की सूची अकबर के हाथ में थमा दी। अकबर ने ऊपर से सूची पढ़नी शुरू की और कुछ परिचित आँखवालों का नाम भी देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। परन्तु तब तो उनके आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं रहा, जब उन्होंने सूची के अंत में अपना नाम भी लिखा देखा।
यह सोचकर कि बीरबल कुछ सनक गया है, कुछ क्रोधपूर्ण स्वर में उन्होंने बीरबल से पूछा, “बीरबल, तुमने अंधों की सूची में मेरा नाम क्यों डाल रखा है? तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न?”
“जहांपनाह, अन्य लोगों की तरह आपने भी तो यह पूछा था कि ‘तुम क्या कर रहे हो’, जबकि चारपाई बुनते हुए मैं सभी को साफ-साफ दिखाई दे रहा था।
इसमें पूछने वाली तो कोई बात ही नहीं थी।’ बादशाह यह सुनकर हँसने लगे। वे समझ गए कि बीरबल ने सूची बनाने के झंझट से बचने के लिए ही यह नाटक किया है।
वे बोले, “ठीक है, चूँकि राज्य में बेहिसाब अंधे रहते हैं, इसलिये मैं तुम्हें सूची बनाने के काम से आजाद करता हूँ।” इस प्रकार, बीरबल ने अपनी बुद्धिमानी से खुद को अंधों की सूची बनाने के झंझट से बचा लिया।
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हथेली पर बाल Latest Akbar Birbal ki Kahani
एक बार की बात है, शहंशाह अकबर बीरबल के साथ टहल रहे थे। अचानक शहंशाह ने सोचा कि क्यों न बीरबल की बुद्धि का इम्तहान लिया जाए। इसी बहाने कुछ मनोरंजन भी हो जाएगा।
उन्होंने बीरबल से पूछा, “बीरबल, एक बात बताओ। हमारे जिस्म की लगभग सभी जगहों पर बाल होते हैं। लेकिन हमारी हथेली पर एक भी बाल नहीं होता, ऐसा क्यों?” यह सुनकर बीरबल एक क्षण के लिए सोच में पड़ गए।
वास्तव में उन्हें इस प्रश्न का उपयुक्त उत्तर नहीं पता था। लेकिन उनकी तारीफ वैसे ही नहीं होती थी। उन्होंने अपनी तीव्र बुद्धि का परिचय देते हुए उत्तर दिया,
“जहांपनाह, चूँकि आप लगातार दान करते रहते हैं, इसलिए आपकी हथेली के सभी बाल रगड़ खाकर खत्म हो गए हैं।” बहुत अच्छा! अब यह बताओ कि तुम्हारी हथेली पर बाल क्यों नहीं हैं?” अकबर ने दूसरा प्रश्न दागा।
बीरबल की बुद्धि ऐसे काम करती थी, मानो सभी प्रश्नों के उत्तर उन्होंने पहले से ही सोच रखे हों। वे प्रश्न समाप्त होने के साथ ही बोल उठे, “दरअसल, आपके दिए तोहफों को लेते-लेते रगड़ खाकर मेरी हथेली के भी सारे बाल उड़ गए।”
बीरबल की होशियारी और हाजिरजवाबी का पता अकबर को पहले से ही था। यह उत्तर सुनकर बादशाह मुस्कुराते हुए बोले, “बीरबल, हाजिरजवाबी में तुमसे कोई टक्कर नहीं ले सकता।”
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तम्बाकू की लत Amazing Akbar Birbal ki Kahani
बीरबल को तम्बाकू चबाने की आदत थी। बादशाह उन्हें कई बार यह आदत छोड़ने के लिए कह चुके थे, लेकिन बीरबल की आदत छूट ही नहीं रही थी। बीरबल को तम्बाकू की बुरी लत पड़ चुकी थी।
एक बार बादशाह बीरबल के साथ एक खेत से होकर गुजर रहे थे। उस खेत के पास ही एक तम्बाकू का खेत भी था। उस खेत की ओर इशारा करके बादशाह बीरबल से कछ कहने ही वाले थे कि तभी उनकी नजर उस खेत की ओर बढ़ते एक गधे पर पड़ी।
लेकिन खेत के अंदर घुसते ही वह गधा अचानक ठिठक गया। उसने दो-तीन बार संघ और फिर तेजी से उस खेत से बाहर निकल गया। यह देखकर बादशाह हँसते हुए बीरबल से बोले, “दिया तुमने, गधे भी तम्बाकू खाना पसंद नहीं करते।”
“देखा हुजूर, गधा ही तम्बाकू खाना पसंद नहीं करते।” बीरबल ने तपाक से जवाब दिया। बादशाह को काटो तो खून नहीं। बीरबल ने अपनी बात से उनको निरुत्तर कर दिया था।
कुछ देर बाद वे फिर बोले, “बात का जवाब बात से देकर तुमने मुझे लाजवाब तो कर दिया, लेकिन जो बात सच है उसे तुम नकार नहीं सकते तम्बाकू चबाना सेहत के लिए नुकसानदायक है और यह बात तुम्हें भी माननी पड़ेगी।
तुम जितनी जल्दी यह बात मान लो, उतना अच्छा है। बेहतर तो यही होगा कि तुम तम्बाकू चबाना तुरंत बंद कर दो। मैंने तुम्हारे शुभचिंतक के नाते तुम्हें नेक सलाह दी है। आगे तुम्हारी मर्जी।”
बीरबल यह तो जानते ही थे कि बादशाह की बात सही है। वे बोले, “बंदापरवर, मैं यह बात अच्छी तरह समझता हूँ। मैं इस आदत को छोड़ने की भरसक कोशिश करूँगा।”
मोटा होने की वजह Unique Akbar Birbal ki Kahani
बादशाह अकबर और बीरबल मनोविनोद कर रहे थे। तभी बीरबल बादशाह से बोले, “हुजूर, आजकल आप लगातार मोटे होते जा रहे हैं। गुस्ताखी माफ हो, मगर अब आप कहीं जाते हैं, तो वहाँ आप बाद में पहुँचते हैं, आपकी तोंद पहले पहुँच जाती है।”
बादशाह ने झेंपते हुए जवाब दिया, “यह सब शाही रसोइए की वजह से हुआ है। वह खाना बनाने में घी-तेल और मिर्च-मसालों का भरपूर इस्तेमाल करता है।”
“नहीं हुजूर,” बीरबल बोले, “यह इस वजह से हुआ है कि आपको कोई चिंता नहीं है। अगर किसी शख्स पर लगातार चिंता या तनाव हावी रहे, तो वह अच्छे से अच्छा खाना खाने के बाद मोटा नहीं हो सकता।”
“मैं यह बात नहीं मानता। एक जानवर भी बढ़िया खाना खिलाने पर मोटा हो जाता है। तुम अपनी बात साबित करके दिखाओ।” बादशाह ने बीरबल को चुनौती दी।
अगले दिन बीरबल ने बाजार से एक बकरी खरीदी और एक बार बादशाह को दिखाकर उसे अपने घर ले गए। उन्होंने अपने नौकरों से उस बकरी को रोज अच्छे से अच्छा खाना खिलाने को कहा।
बीरबल ने यह बात बादशाह को पहले ही बता दी थी कि बकरी को बढ़िया भोजन दिया जाएगा। नौकरों ने ऐसा ही किया। धीरे-धीरे एक महीना गुजर गया।
फिर बीरबल ने बादशाह से खुद चलकर उस बकरी का निरीक्षण करने का आग्रह किया। अकबर बीरबल के साथ चल पड़े। जब उन्होंने बीरबल के घर पहुँचकर उस बकरी को देखा, तो उन्हें बड़ी हैरत हुई।
बकरी बिल्कुल भी मोटी नहीं हुई थी। उल्टे वह कमजोर सी लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी दहशत में हो। “मुझे तो बड़ी हैरत है, बीरबल, कि यह बकरी मोटी क्यों नहीं हुई।
क्या इसकी खिलाई-पिलाई में लापरवाही हुई है?” बादशाह बोले। “बिल्कुल नहीं, हुजूरे आला!” बीरबल तुरंत बोले, “आप नौकरों से इस बात की जाँच कर सकते हैं।”
“तब तो यह बड़े ताज्जुब की बात है कि इसका वजन फिर भी नहीं बढ़ा।” बादशाह ने बड़ी हैरत से कहा। “मैंने उसे शेर के पिंजरे से बाँध दिया था।
इसके बाद उसे एक महीने तक अच्छे से अच्छा खाना खिलवाया, मगर शेर के पास रहने से उसके मन में बनी दहशत ने उसका वजन बिल्कुल नहीं बढ़ने दिया।” बीरबल ने बादशाह को बताया। बादशाह को मानना पड़ा कि बीरबल ने अपनी बात सावित कर दी है।
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देने वाले के हाथ Interesting Akbar Birbal ki Kahani
एक दिन बादशाह अकबर सरकारी कामकाज निपटाने के बाद दरबारियों के साथ मनोविनोद करके अपनी थकावट मिटा रहे थे। बातों के दौरान ही बादशाह बोले, “लेने वाले का हाथ हमेशा देने वाले के हाथ के नीचे होता है।”
“हुजूर ने दुरुस्त फरमाया!” कई दरबारी एक साथ बोले, “देने वाला हमेशा ऊपर होता है।” “क्यों बीरबल, तुम्हारा इस बारे में क्या कहना है?” बादशाह ने पूछा। “जहांपनाह, मुझे लगता है कि हमेशा ऐसा नहीं होता।”
बीरबल ने कहा। “अच्छा! तो फिर मुझे बताओ कि देने वाले का हाथ कब नीचे होता है।” बादशाह कुछ गुस्से से बोले। वे मन ही मन सोच रहे थे, ‘लगातार शाबाशी पाने से बीरबल की आदत बिगड़ गई है।
जो बात एकदम साफ होती है, अब यह उस पर भी बहस करने लगता है।’ उधर बीरबल बोले, “जब तम्बाकू मलकर देने वाला व्यक्ति किसी को तम्बाकू दे रहा होता है, उस समय उसका हाथ नीचे ही होता है।”
वादशाह बीरबल की बात सुनकर हैरत से उनकी ओर देखते रह गए। वे खुलकर तो कुछ नहीं बोले, लेकिन मन ही मन वे बीरबल की निरीक्षण शक्ति की तारीफ कर रहे थे। इस ओर तो उनका ध्यान कभी गया ही नहीं था। वे समझ गए कि उन्हें व्यर्थ ही बीरबल पर क्रोध आ गया था।
अजीब इनाम Best Akbar Birbal ki Kahani
एक दिन कुछ गरीब लोगों ने बीरबल से शाही पहरेदारों के भ्रष्ट हो जाने की शिकायत की। वे लोग कोई शिकायत लेकर बादशाह के दरबार में गए थे, लेकिन उन रिश्वतखोर पहरेदारों ने उन्हें अंदर जाने ही नहीं दिया था।
गरीबों की शिकायत सुनकर बीरबल बड़े चिंतित हुए और उन्होंने खुद इस बात की तहकीकात करने का फैसला कर लिया। अगले ही दिन वे एक फारसी कवि की वेशभूषा में दरबार की ओर चल दिए। दरबार के मुख्य द्वार पर पहुँचकर वे पहरेदारों से बोले,
“मुझे शहंशाह के दरबार में ले चलो। मैं उनसे मुलाकात करना चाहता हूँ।” “इस वक्त हम तुम्हें अंदर नहीं जाने दे सकते।” पहरेदार बोले। “वह क्यों भला?” कवि बने बीरबल ने हैरत जताते हुए पूछा।
“बादशाह सलामत अभी काम में व्यस्त हैं।” एक पहरेदार बोला। “लेकिन मैं फारस से हिंदुस्तान सिर्फ बादशाह सलामत से मिलने आया हूँ। मैं उनहें कुछ शेर सुनाना चाहता हूँ, जो मैंने खास उन्हीं के लिए लिखे हैं।” बीरबल बोले।
“ठीक है, हम तुम्हें जाने देंगे, लेकिन एक शर्त है। तुम्हें शेर सुनाने पर जो भी इनाम मिलेगा, उसमें से आधा तुम हमें दे दोगे।” एक पहरेदार बोला। बीरबल ने तुरंत उनकी शर्त मान ली।
वह तो वहाँ आए ही उन्हें बेनकाब करने के लिए थे। “लेकिन एक बात ध्यान रखना। इस बारे में बादशाह सलामत से दरबार में कुछ न कहना।
तुम यहाँ पहली बार आए हो, इसलिए यहाँ के रिवाज नहीं जानते। यहाँ का कायदा है कि इनाम की आधी रकम पहरेदारों को मिलती है। खुद बादशाह सलामत को इस बारे में सब मालूम है।” पहरेदारों ने गप्प हॉकी।
बीरबल ने तो पहले ही पहरेदारों की शर्त कबूल कर ली थी। इसलिए वे उन्हें बादशाह के सामने ले गए। वहाँ बीरबल ने बादशाह को बहुत से लाजवाब शेर सुनाए।
दरबारी भी उन शेरों को सुनकर ‘वाह वाह’ किए बगैर नहीं रह सके। बादशाह उनके शेरों की तारीफ करते हुए बोले, “भई वाह! हमें तो तुम्हारी शायरी की दाद देने के लिए लफ्ज ही नहीं मिल रहे हैं।
हम तुम्हें तुम्हारी मेहनत के बदले कुछ इनाम देना चाहते हैं।” “हुजूर, क्या मुझे अपना मनचाहा इनाम माँगने की इजाजत मिलेगी?” शायर के रूप में बीरबल बोले। “क्या चाहते हो तुम?” अकबर ने अपनी बुलंद आवाज में पूछा।
“मुझे सौ कोड़े मारे जाएँ।” बीरबल ने कहा। सारे दरबार में बीरबल की बात सुनकर सन्नाटा छा गया। सभी दरबारी हैरत से एक-दूसरे की शक्ल देखने लगे।
बादशाह ने भी अचम्भे से पूछा, “तुम अपने लिए ऐसा इनाम क्यों चाह रहे हो?” “जहांपनाह, यह सारा इनाम मेरे अपने लिए थोड़े ही है। उसमें मेरे साझीदार भी तो हैं।”
शायर बने बीरबल ने कहा। “कौन है तुम्हारा साझीदार?” बादशाह की हैरत का प्यार नहीं था, “तुम्हारा इनाम कौन बाँटना चाहता है?” “पहरेदार, हुजूर!” बीरबल बोले, “इसी शर्त पर तो उन्होंने मुझे अंदर आने दिया था।”
“दारोगा-ए-महल, पहरेदारों को तुरंत इनाम के कोड़े रसीद किए जाएँ।” बादशाह ने हुक्म दिया। फिर वे बीरबल की ओर मुखातिब होकर बोले, “हम चाहते हैं कि अब तुम हमारे दरबार में ही रहो।” “वो तो मैं पहले से ही हूँ!” कहते हुए बीरबल ने अपना नकली वेश हटा दिया।
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समुद्र की शादी for Kids Akbar Birbal ki Kahani
एक बार, बादशाह, बीरबल के किसी मजाक पर चिढ़ गए और उन्होंने उन्हें तुरंत अपना राज्य छोड़कर जाने का हुक्म दे दिया। बीरबल चुपचाप वहाँ से चले गए।
गुस्सा ठंडा होने के बाद बादशाह ने बीरबल को बहुत ढूंढा, लेकिन उनके सिपाहियों को बीरबल कहीं नहीं मिले। अव बादशाह ने बीरबल को ढूंढ निकालने की एक युक्ति सोची।
वे जानते थे कि बीरबल कोई भी चुनौती मिलने पर खुद को रोक नहीं पाते। उन्होंने निश्चय किया कि वे ऐसा सवाल पूछेंगे, जिसका जवाब बीरबल के अलावा कोई न दे सके।
अगले दिन उन्होंने सभी पड़ोसी राजाओं के पास संदेश भिजवा दिया कि वे अपने राज्य के समुद्र की शादी करवाना चाहते हैं और इसके लिए वे राजा अपने राज्य की नदियों को उनके पास भिजवा दें।
कुछ दिनों तक बादशाह के प्रस्ताव का कोई जवाब नहीं आया। अकबर को निराशा होने लगी। वे सोचने लगे कि क्या बीरबल ने चुनौतियों को स्वीकार करने की अपनी आदत छोड़ दी है।
वे उम्मीद छोड़ने ही वाले थे कि तभी एक दिन एक राज्य से उनके पास एक पत्र आया जिसमें लिखा था- ‘हम समुद्र से शादी के लिए अपने राज्य की नदियों को भेजने के लिए तैयार हैं। लेकिन एक शर्त है।
उनका स्वागत करने के लिए आपके राज्य के कुँओं को आधी दूरी तय करके आना होगा।’ अकबर को समझते देर न लगी कि इस तरह का उत्तर बीरबल के अलावा और कोई नहीं दे सकता। उन्होंने तुरंत अपने दूतों को उस राज्य में भेजकर बीरबल को फिर से अपने पास बुलवा लिया।
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सबसे सुंदर बच्चा Children Akbar Birbal ki Kahani
बादशाह अकबर का एक पोता था जिसे वे बहुत प्यार करते थे। एक दिन वे दरबार में अपने पोते की तारीफ करते हुए कहने लगे, “मेरे पोता पूरी दुनिया में सबसे प्यारा बच्चा है।
उससे सुंदर और प्यारा बच्चा चिराग लेकर ढूँढने पर भी नहीं मिलेगा।” बादशाह के यह कहते ही दरबारियों ने उनकी हाँ में हाँ मिलाना शुरू कर दिया। बीरबल भी उस समय दरबार में ही मौजूद थे।
वे उठकर बोले, “आप ऐसा इसलिए सोचते हैं, क्योंकि आप उस बच्चे के दादा हैं। आप हमेशा उसे उन्हीं नजरों से देखते हैं।” बीरबल की यह बात सुनकर बादशाह को बहुत गुस्सा आया। “ठीक है।
अगर ऐसी बात है तो उससे ज्यादा सुंदर बच्चे को लाकर मुझे दिखाओ।” बादशाह ने बीरबल को चुनौती दी। अगले ही दिन बीरबल बादशाह को शहर की एक मलिन बस्ती में ले गए।
शहर के उस भाग में ऐसे लोग रहते थे, जो आर्थिक रूप से बहुत पिछड़े हुए थे। वहाँ उन्होंने एक बच्चे को धूल-मिट्टी में खेलते हुए देखा। “जहांपनाह, यही बच्चा दुनिया का सबसे सुंदर बच्चा है।”
बीरबल बोले। “ये!” बादशाह बड़ी हैरत से उस बच्चे को देखने लगे। वह साँवला था और उसके चेहरे के बड़े हिस्से पर एक सफेद धब्बा था। उसका पूरा शरीर धूल और मिट्टी से सना हुआ था। उसके कपड़े कई जगहों से फटे हुए थे। ऐसा लगता था जैसे उसे कई दिनों से नहलाया न गया हो।
बादशाह हँसते हुए बीरबल से बोले, “तुम इस बच्चे को सुंदर कह रहे हो? मैंने तो अपनी जिंदगी में इससे बदसूरत बच्चा नहीं देखा।” अकबर ने अपनी बात अभी पूरी ही की थी कि तभी एक औरत भागती हुई पास की एक झोंपड़ी से निकल आई और चिल्लाने लगी,
“तुम्हारी मेरी औलाद को बदसूरत कहने की हिम्मत कैसे हुई? मेरा बच्चा दुनिया में सबसे सुंदर है। दुनिया का कोई भी बच्चा मेरे बच्चे जितना प्यारा नहीं है।
मुझे तो लगता है तुम्हें बच्चों के बारे में कुछ मालूम ही नहीं है। तभी तुम ऐसी बातें करते हो। अब चुपचाप यहाँ से चले जाओ।” यह कहते हुए उस औरत ने बच्चे को उठाया और उसे चूमती-सहलाती हुई अपनी झोंपड़ी में घुस गई।
“तुम सही कहते थे, बीरबल। हर कोई यही सोचता है कि उसी का बच्चा दुनिया में सबसे खूबसूरत है। दूसरे बच्चों की अच्छाइयों की तरफ उसकी नजर ही नहीं जाती।” बादशाह ने कहा। बीरबल बादशाह की बात के जवाब में कुछ नहीं बोले। वे बस थोड़ा मुस्कुरा दिए।
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जिंदा या मुर्दा Students Akbar Birbal ki Kahani
बादशाह अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक बीरबल का होशियारी और हाजिरजवाबी में कोई सानी नहीं था। गरीबों से बीरबल को बड़ी हमदर्दी थी और वे उनकी मदद करने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते थे।
यही कारण था कि गरीबों और आम जनता के बीच बीरबल बहुत लोकप्रिय थे। एक बार बादशाह का एक नौकर भागता हुआ बीरबल के पास आया। उसके माथे से पसीना टपक रहा था और उसे देखकर ही लग रहा था कि वह बहुत परेशान है।
“क्या हुआ, सीताराम?” बीरबल ने उससे पूछा। सीताराम उस नौकर का नाम था। उसने बताया, “कुछ दिनों पहले बादशाह सलामत ने मुझे एक तोता दिया था। वह तोता बादशाह सलामत को एक ऐसे फकीर ने तोहफे में दिया था, जिसे वे बहुत मानते थे।
उनका हुक्म था कि तोते की देखभाल में किसी तरह की कसर नहीं छूटनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि जो कोई भी उन्हें उस तोते के मर जाने की खबर सुनाएगा, उसे वे फाँसी पर लटका देंगे।”
“और अब वह तोता मर गया है! यही न?” बीरबल मुस्कुराते हुए बोले। “आपको कैसे पता?” सीताराम ने आश्चर्य से पूछा। “हम तो उड़ती चिड़िया के पर गिनने वालों में हैं।”
बीरबल हँसे। “हुजूर, मुझे बचा लीजिए। मेरी भरसक कोशिश के बाद भी वह तोता अचानक बीमार पड़ गया। इसके पहले कि मैं हकीम साहब से उसके लिए दवा ला पाता, वह मर गया। खुद तो भगवान को प्यारा हो गया, मगर मेरी जान सांसत में डाल गया।
अब मैं बादशाह के गुस्से से कैसे निपटेंगे?” सीताराम एक ही साँस में कहता चला गया। डर के कारण उसकी हालत खराब हो रही थी। “तुमने ठीक से देख लिया है न कि वह मर गया है?
कहीं ऐसा तो नहीं कि वह झपकी ले रहा हो और तुमने समझा हो कि वह मर गया है?” बीरबल ने पूछा। “नहीं, नहीं, हुजूर, वह जिंदा नहीं है। यह बात पक्की कर लेने के बाद ही मैं आपक पास आया हूँ।” सीताराम ने बताया।
अब बीरबल गम्भीर हो उठे। वे सीताराम को भरोसा दिलाते हुए बोले, “चिंता यहीं छोड़कर सुकून के साथ घर जाओ। बादशाह को उस तोते के मर जाने की खबर मैं सुनाऊँगा।”
सीताराम को बीरबल पर अटूट विश्वास था। उनके यह कहते ही उसकी सारी चिंता दूर हो गई और वह उन्हें नमस्कार करके अपने घर चला गया। बाद में बीरबल भी निश्चित समय पर बादशाह के दरबार में जा पहुंचे। उस दिन बादशाह अच्छे मूड में दिख रहे थे।
उपयुक्त मौका समझकर बीरबल बादशाह से बोले, “बंदापरवर, मैं आज ही उस तोते को देखने गया था जो आपको फकीर साहब ने तोहफे में दिया था। सच, फकीर साहब का वह तोता भी किसी फकीर से कम नहीं है।
जब मैं उसके पास पहुँचा, तो वह गम्भीर मुद्रा में लेटा हुआ विचार कर रहा था!” बीरबल की बात सुनकर बादशाह हैरानी से बोले, “तुम जो कुछ कह रहे हो, अगर यह सच है, तो तो ये बड़ी हैरतअंगेज बात है। वह तोता जरूर कोई अजूबा होगा,
जो फकीरों की तरह सोचता है।” यह कहकर बादशाह बीरबल और दूसरे दरबारियों के साथ उस तोते को देखने के लिए नौकर सीताराम के घर की ओर चल दिए। वहाँ उस तोते को देखते ही वे समझ गए कि तोता मर चुका है।
वे बीरबल से बोले, “कोई भी इस तोते को देखकर समझ सकता है कि यह मर चुका है।” “तोते के मरने की बात आप ही कह रहे हैं, हुजूर, मैं नहीं।” बीरबल बड़े अदब से बोले।
बादशाह अकबर चौंके। उन्हें याद आ गया कि तोते के मरने की खबर देने वाले को उन्होंने क्या सजा देने की बात कही थी। तभी बीरबल ने फिर से कहा, “हुजूर, जिसका जन्म हुआ है, उसका मरना भी निश्चित है।
फिर इस बात पर किसी को सजा देने की क्या जरूरत है?” बादशाह बीरबल के झूठ बोलने का कारण समझ चुके थे। वे बोले, “मैं सीताराम को माफ करता हूँ। उसे कोई सजा नहीं दी जाएगी। हाँ, मुझसे सीताराम की जान बख्शवाने का इनाम तुम्हें जरूर मिलेगा।”
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कठिन काम Awesome Akbar Birbal ki Kahani
एक दिन बीरबल बादशाह अकबर के दरबार में देर से पहुँचे। उस दिन बादशाह को बीरबल से कोई जरूरी काम था, इसलिए उनके देर से आने पर वे कुछ नाराज हो गए।
बीरबल के आते ही उन्होंने गुस्से से पूछा, “बीरबल, क्या मैं जान सकता हूँ तुम्हें दरबार आने में देर कैसे हो गई?” बादशाह का सवाल सुनकर बीरबल कुछ हिचकिचाते हुए बोले, “हुजूर, मैं घर से निकल ही रहा था,
तभी मेरा बेटा रोने लगा मैं भला अपने बेटे को रोता हुआ छोड़कर कैसे निकल सकता था? इसलिए मैं उसे चुप कराने लगा। इसी में मुझे देर हो गई।”
बीरबल की बात सुनकर सारे दरबारी ठहाके लगाने लगे और आपस में कानाफूसी करने लगे। एक दरबारी बोला, “वाह! हाजिरजवाबी के लिए मशहूर बीरबल के लिए एक बच्चे से निपटना मुश्किल हो गया।”
बादशाह भी हँसते हुए कहने लगे, “बीरबल, मैं तो समझता था कि तुम बड़े चतुर आदमी हो। लेकिन अब यह बात साफ हो चुकी है कि मैं गलत था।
जब तुम्हारा बेटा रो रहा था, उस समय तुम्हारा तेज दिमाग कहाँ चला गया था?” “जहांपनाह, बच्चों की फरमाइश पूरी करना बड़ा मुश्किल होता है।
वैसे तो मेरी बीवी बच्चे को संभाल लेती थी, लेकिन इस समय वह मायके गई हुई है। इसलिए बच्चे को चुप कराने की जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई थी।”
“क्या बात कर रहे हो?” बादशाह बोले, “इसका मतलब तुम्हें बच्चों से निपटना नहीं आता। कल तुम अपने बेटे को मेरे पास ले आना फिर मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि बच्चों की फरमाइश पूरी करना कोई इतना मुश्किल काम नहीं है।”
अगले दिन बीरबल अपने चार साल के बेटे को दरबार में ले आए। बादशाह ने उस बच्चे को तख्त के नजदीक बुलाया और उसे अपनी गोद में बिठा लिया। “बेटा, मैं हिंदुस्तान का शहंशाह हूँ।
तुम्हारी कोई भी फरमाइश ऐसी नहीं है, जो मैं पूरी न कर सकूँ। बताओ, तुम्हें क्या चाहिए?” बादशाह ने बड़े प्यार से पूछा। लेकिन बच्चे का ध्यान बादशाह की बातों पर नहीं था।
उसने झपटकर बादशाह की पगड़ी उनके सिर से उठा ली और उसे फर्श पर फेंक दिया। बादशाह हँसकर अपनी झेप मिटाने लगे। “मैं गन्ना खाऊँगा,” वह बच्चा मचलते हुए बोला, “मुझे गन्ना अच्छा लगता है।”
“इतनी सी चीज!” बादशाह हँसे। फिर उन्होंने नौकर को हुक्म दिया, “तुरंत गन्ना लाकर इस बच्चे को दो।” नौकर तुरंत हुक्म की तामील के लिए भागा। उसने एक गन्ना अच्छी तरह छील-काटकर एक तश्तरी पर सजाया और फिर वह उस बच्चे को दे दिया।
लेकिन बच्चे ने उस तश्तरी पर नजर तक नहीं डाली। वह फिर रोते-रोते चिल्लाया, “मुझे ये नहीं चाहिए। मुझे पूरा गन्ना चाहिए।” ‘ठीक है, ये तश्तरी ले जाओ और बच्चे को पूरा गन्ना लाकर दो।” बादशाह ने नौकरों को हुक्म दिया। नौकर फिर दौड़े। इस बार वे पूरा गन्ना लेकर आए थे।
लेकिन बच्चे ने उस गन्ने की तरफ भी बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। वह फिर रोया, “मुझे ये गन्ना नहीं, पहले वाला गन्ना ही चाहिए। पहले वाले गन्ने के टुकड़ों को जोड़कर फिर मुझे दो।”
यह सुनकर बादशाह और नौकर दोनों हैरान रह गए। बादशाह बच्चे को समझाते हुए बोले, “बेटा, गन्ने के टुकड़ों को दोबारा जोड़ना मुमकिन नहीं है तुम ये गन्ना ले लो।”
“नहीं, आप तो कह रहे थे आपके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। गन्ने को दोबारा जोड़कर मुझे दिलाइए।” बच्चा रोता ही जा रहा था। बादशाह ने बच्चे को चुप कराने की बड़ी कोशिश की, लेकिन बच्चा चुप नहीं हुआ।
दरबारी भी बच्चे की मंशा पूरी करने में बादशाह को नाकाम देखकर हैरान हो रहे थे। उन्हें भी बच्चे से निपटने का कोई तरीका नहीं सूझ रहा था। जब बादशाह हर कोशिश करके थक गए तो बीरबल से बोले, “बीरबल, तुम अपने बेटे को घर ले जाओ।
इसकी ख्वाहिश पूरी करना हमारे बूते के बाहर की बात है।” बीरबल हँसते हुए बोले, “हुजूर, मैं तो पहले ही कह रहा था कि बच्चों की मंशा पूरी करना बड़ा कठिन होता है।” “तुम सही थे,” बादशाह बोले, “अब मैं तुम्हें कभी देर से आने पर नहीं रुकेगा।”
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सज़ा Akbar Birbal ki Kahani Hindi
बादशाह अकबर रोज शाम अपने महल के बाहर टहलते थे। एक शाम जब वे टहलते हुए अपने महल के पिछले हिस्से की ओर पहुँचे, तभी उनकी नजर दीवार के एक हिस्से पर पड़ी जिसका प्लास्टर उखड़ चुका था।
उन्होंने तुरंत ताली बजाई। तत्काल ढोलक नाम का एक नौकर भागता हुआ उनके पास आया। “यह दीवार मेरे महल की खूबसूरती पर धब्बे की तरह है। इसकी तुरंत मरम्मत करवाओ।” बादशाह ने हुक्म दिया।
“जी हुजूर!” ढोलक बोला। अगले दिन बादशाह घूमते हुए फिर उसी जगह पर जा पहुँचे। वे देखना चाहते थे कि मरम्मत के बाद दीवार कैसी लग रही है। लेकिन वहाँ पहुँचकर उन्होंने देखा कि दीवार तो वैसी ही पड़ी हुई है, जैसी पिछले दिन थी।
उसकी मरम्मत अभी तक नहीं हुई थी। यह देखकर उन्हें बहुत गुस्सा आया। उन्होंने तुरंत ढोलक को बुलवा भेजा। उसके आते ही वे गरजे, “यह सब क्या है? अभी तक दीवार की मरम्मत क्यों नहीं हुई है?”
“म…मुझे दीवार बनवाने का वक्त नहीं मिला, गरीबपरवर।” ढोलक हकलाता हुआ बोला। डर की वजह से उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम थी। “वक्त नहीं मिला,” बादशाह ने गुस्से से कहा, “हमारी हुक्म उदूली करने की सजा तुम्हें जरूर मिलेगी।
तुरंत जाकर चूने से भरे दो कटोरे ले आओ।” ढोलक समझ नहीं पाया कि बादशाह ने उसे चूना लाने का हुक्म क्यों दिया है। वह चुपचाप चूना लाने चल पड़ा। रास्ते में ढोलक की मुलाकात बीरबल से हुई।
बीरबल तो उड़ती चिड़िया के पर गिनने वालों में से थे। वे उसकी शक्ल देखते ही समझ गए कि कुछ गड़बड़ हुई है। उन्होंने ढोलक से पूछा, “क्या बात है? तुम इतने परेशान क्यों हो?” ढोलक ने उन्हें सब कुछ बता दिया।
“अब मैं समझा। सजा के तौर पर बादशाह सलामत तुमसे चूना खाने के लिए कहेंगे। ऐसा है, मैं तुम्हें एक चीज देता हूँ। एक कटोरे में तुम चूने की बजाय वह चीज रख लेना। जब बादशाह सलामत तुम्हें चूना खाने के लिए कहें,
तो तुम उसी कटोरे से खाने लगना। दूसरे कटोरे से खाने की नौबत ही नहीं आएगी।” ढोलक ने बीरबल की बात मान ली। जब वह दोनों कटोरे लेकर बादशाह के पास पहुँचा, तो बीरबल के कहे अनुसार उन्होंने उसे चूना खाने का हुक्म दिया।
ढोलक ने तुरंत उस कटोरे से खाना शुरू कर दिया, जो उसे बीरबल ने दिया था। आखिरकार बादशाह को उस पर रहम आ गया और वे बोले,”चलो, इतना बहुत है।
अब जाओ।” बादशाह को सिर नवाकर ढोलक चुपचाप वहाँ से चला गया। बादशाह सोच रहे थे, ‘इतना चूना खाने की वजह से ढोलक की तबीयत बिगड़ जाएगी और वह कुछ दिनों तक नौकरी करने नहीं आ सकेगा।’
लेकिन, अगले दिन बादशाह ने ढोलक को रोज की तरह काम करते देखा। उसे देखकर बिल्कुल नहीं लग रहा था कि उसकी तबीयत खराब है। यह देखकर बादशाह हैरान होते हुए सोचने लगे, ‘लगता है जैसे मेरी सजा इस पर पूरी तरह बेअसर रही है।
मुझे इसे फिर से सजा देनी चाहिए।’ यह सोचकर बादशाह ने ढोलक को आवाज दी। ढोलक के सामने आते ही वे बोले “तुरंत जाकर चूने से भरे दो कटोरे ले आओ।”
ढोलक तुरंत महल से बाहर निकला और बीरबल के पास जा पहुँचा। उसने बीरबल को बताया कि इस बार भी बादशाह ने उसे चूने से भरे दो कटोरे लाने के लिए भेजा है।
बीरबल बोले, “जब उन्होंने देखा कि उनकी दी सजा तुम्हारे ऊपर पूरी तरह बेअसर हुई है, तो उन्हें गुस्सा आ गया होगा और उन्होंने फिर तुम्हें चूना लाने के लिए भेज दिया होगा।
इस बार वे जरूर तुम्हें चूने के दो कटोरे खिलवाना चाहते होंगे।” फिर बीरबल ने उसे दोनों कटोरे एक वस्तु से भरकर दे दिए। इसके बाद ढोलक दोबारा महल में जा पहुँचा।
बादशाह ने उसे दोनों कटोरों से चूना खाने का हुक्म दिया। ढोलक तुरंत वहीं बैठकर चूना खाने लगा। बादशाह बड़े ध्यान से देखने लगे कि चूना खाने का ढोलक पर क्या प्रभाव पड़ता है।
लेकिन ढोलक तो आराम से खाता चला जा रहा था। उसके चेहरे पर पीड़ा के कोई लक्षण नहीं थे। अब तो बादशाह को संदेह हो गया। “दोनों कटोरे मझे दिखाओ।” उन्होंने ढोलक को हुक्म दिया।
फिर से ढोलक से दोनों कटोरे लेकर उनका बारीकी से निरीक्षण करने लगे। जब उन्होंने थोड़ा सा चूना चखकर देखा, तो पाया कि वह दरअसल चूना नहीं बल्कि मक्खन था। “इनमें मक्खन भरकर लाने के लिए तुमसे किसने कहा?”
बादशाह ने ढोलक को डाँटते हुए पूछा। “बीरबल महाराज ने, हुजूरे आला।” ढोलक ने बताया। बादशाह तो पहले ही समझ गए थे कि यह होशियारी तेज दिमाग बीरबल की ही हो सकती है। उन्होंने ढोलक को क्षमा कर दिया।
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