Hindi MeinHindi Mein
  • Home
  • News
  • Entertainment
  • Fashion
  • Health
  • Sports
  • Tech
  • Tips
  • Travel
Facebook Twitter Instagram
Facebook Twitter Instagram
Hindi MeinHindi Mein
  • Home
  • News
  • Entertainment
  • Fashion
  • Health
  • Sports
  • Tech
  • Tips
  • Travel
Hindi MeinHindi Mein
Home»Stories In Hindi»Best Animal Stories in Hindi with Moral | कहानी: रंगा हुआ सियार 2023
Animal 2BStories 2Bin 2BHindi 2Bwith 2BMoral

Best Animal Stories in Hindi with Moral | कहानी: रंगा हुआ सियार 2023

0
By Ankit on February 24, 2020 Stories In Hindi
Share
Facebook Twitter LinkedIn Pinterest Reddit Telegram WhatsApp Email

Contents

  • New Animal Stories in Hindi with Moral 2020
      • 1. बुद्धिमान खरगोश With Moral Story of Animals Hindi Mein
      • 2. कुसंगति का परिणाम Moral Stories for Kids
      • 3. रंगा हुआ सियार Animals Stories in Hindi for Children
Animal Stories in Hindi with Moral:- Here I’m sharing with you the top 03 Animal Stories in Hindi with Moral which is really amazing and awesome these Stories In Hindi will teach you lots of things and gives you an awesome experience. You can share with your friends and family and these moral stories will be very useful for your children or younger siblings.

Best Animal Stories in Hindi with Moral

New Animal Stories in Hindi with Moral 2020

  • बुद्धिमान खरगोश
  • कुसंगति का परिणाम
  • रंगा हुआ सियार
 

1. बुद्धिमान खरगोश With Moral Story of Animals Hindi Mein

किसी वन में भासुरक नाम का एक सिंह रहता था। बलशाली होने के कारण वह प्रतिदिन अनेक वन्य जीवों को मारा करता था। फिर भी उसे शांति नहीं मिलती थी। वन के सभी जीव-जन्तु उससे बहुत परेशान थे।
 
एक दिन जंगल के सभी जीव मिलकर उसके पास पहुंचे और उससे निवेदन किया—’वनराज, प्रतिदिन अनेक प्राणियों को मारने से क्या लाभ ? आपका आहार तो एक जीव से पूर्ण हो जाता है,
 
इसलिए हम परस्पर कोई ऐसी प्रतिज्ञा कर लें कि जिससे आपको यहां बैठे-बैठे ही आपका भोजन मिल जाए। जाति-क्रम से प्रतिदिन हममे से एक पशु आपके पास आ जाया कोगा।
 
इस प्रकार बिना परिश्रम के आपका जीवन-निर्वाह होता रहेगा और हम लोगों का सामूहिक विनाश भी नहीं होगा क्योंकि प्रजा पर अनुग्रह रखने वाला राजा निरंतर वृद्धि को प्राप्त करता है और लोक के विनाश से राजा का भी विनाश हो जाता है।’
 
सिंह उनकी बात मान गया। तब से वन्य प्राणी निर्भय होकर रहने लगे। इसी क्रम में कुछ दिनों बाद एक खरगोश की बारी आ गई। खरगोश सिंह की मांद की ओर चल पड़ा,
 
किंतु मृत्यु के भय से उसके पैर नहीं उठ रहे थे मौत की घड़ियों को कुछ देर और टालने के लिए वह जंगल में इधर-उधर भटकता रहा। एक स्थान पर उसे एक कुआं दिखाई दिया।
 
उसे देखकर उसके मन में एक विचार आया कि क्यों न भासुरक को उसके वन में दूसरे सिंह के नाम से उसकी परछाई दिखाकर इस कुएं में गिरा दिया जाए ? यही उपाय सोचता-सोचता वह भासुरक सिंह के पास बहुत देर बाद पहुंचा।
 
बुद्धिमान खरगोश With Moral Story of Animals Hindi Mein
 
सिंह उस समय भूख-प्यास से बेकल होता हुआ अपने होंठ चाट रहा था। उसके भोजन की घड़ियां वीत रही थीं। वह सोच ही रहा था कि कुछ देर तक और कोई पशु न आया तो वह अपने शिकार को चल पड़ेगा और पशुओं के खून से सारे जंगल को सींच देगा।
 
उसी समय वह खरगोश उसके पास पहुंच गया और उसको प्रणाम करके बैठ गया। खरगोश को देखकर सिंह ने क्रोध से लाल-लाल आंखें करके गरजकर कहा-‘अरे खरगोश ! एक तो तू इतना छोटा है और फिर इतनी देर लगाकर आया है।
 
आज तुझे मारकर कल से मैं जंगल के सारे पशुओं की जान ले लूंगा। उनका वंश नाश कर लूंगा। खरगोश ने विनयपूर्वक सिर झुकाकर उत्तर दिया-‘स्वामी ! आप व्यर्थ ही क्रोध कर रहे हैं।
 
इसमें न मेरा अपराध है और न अन्य पशुओं का। कुछ फैसला करने से पहले मेरे देरी से आने के कारण को तो सुन लीजिए।’ शेर गुर्राया—’जो बोलना है, जल्दी बोल ।
 
मैं बहुत भूखा हूं। कहीं तेरे कुछ कहने से पहले ही मैं तुझे चबा न जाऊं।’ ‘स्वामी ! बात यह है कि सभी पशुओं ने आज सभा करके और यह सोचकर कि मैं बहुत छोटा हूं, मुझे तथा अन्य चार खरगोशों को आपके भोजन के लिए भेजा था।
 
हम पांच आपके पास आ रहे ये कि मार्ग में एक दूसरा सिंह अपनी गुफा से निकलकर आया और बोला-अरे, किधर जा रहे हो तुम सब ? अपने देवता का अन्तिम स्मरण कर लो, मैं तुम्हें खाने आया हूं।
 
मैंने उससे कहा-हम सब अपने स्वामी भासुरक सिंह के पास आहार के ‘तब वह बोला-भासुरक कौन होता है ? यह जंगल तो मेरा है। मैं ही तम्हारा राजा हूं। तुम्हे जो बात कहनी हो, मुझसे कहो।
 
भासुरक चोर है। तुममें से चार खरगोश यही रह जाएं, एक खरगोश भासुरक के पास जाकर उसे बुला लाए, मैं उससे स्वयं निपट लूंगा। हममें से जो अधिक बलशाली होगा, वही इस जंगल का राजा होगा।
 
मैं तो किसी तरह से उससे जान छुड़ाकर आपके पास आया हूं, महाराज। इसलिए मुझे देरी हो गई। आगे स्वामी की जो इच्छा हो, करें।’ यह सुनकर भासुरक बोला—’ऐसा ही है तो जल्दी से मुझे उस दूसरे सिंह के पास ले चलो।
 
आज मैं उसका रक्त पीकर ही अपनी भूख मिटाऊंगा। इस वन में मेरे अतिरिक्त अन्य किसी सिंह का हस्तक्षेप मुझे असह्य है।’ खरगोश ने कहा—’हे स्वामी ! यह तो सत्य है कि अपने स्वत्व के लिए युद्ध करना आप जैसे शूरवीरों का धर्म है,
 
किंतु दूसरा सिंह अपने दुर्ग में बैठा है दुर्ग से बाहर आकर उसने हमारा रास्ता रोका था। दुर्ग में रहने वाले शत्रु पर विजय पाना बड़ा कठिन है। दुर्ग में बैठा हुआ शत्रु सौ शत्रुओं के बराबर माना जाता है।
 
दुर्गहीन राजा दंतहीन सांप और मदहीन हाथी की तरह कमजोर हो जाता है।’ इसके प्रत्युत्तर में भासुरक बोला-‘तेरी बात ठीक है, किंतु मैं उस दुर्ग में बैठे सिंह को भी मार डालूंगा। शत्रु को जितनी जल्दी हो सके नष्ट कर देना चाहिए।
 
मुझे अपने बल पर पूरा भरोसा है। शीघ्र ही उसका नाश न किया तो बाद में वह असाध्य रोग की तरह प्रबल हो जाएगा।’ खरगोश ने कहा-‘ठीक है, यदि स्वामी का यही निर्णय है तो आप मेरे साथ चलिए।’
 
यह कहकर खरगोश भासुरक को उसी कुएं के पास ले गया, जहां झुककर उसने अपनी परछाई देखी थी। वहां पहुंचकर वह बोला-‘स्वामी ! मैंने जो कहा , वही हुआ। आपको आता देखकर वह अपने दुर्ग में छिप गया है।
 
आइए, मे आपको उसकी सूरत दिखा दूं।’ जरूर। मैं उस नीच को देखकर उसके दुर्ग में जाकर ही उससे लडूंगा।’ खरगोश भासुरक सिंह को कुएं की मेड़ पर ले गया। भासुरक ने झुककर कका तो उसे अपनी ही परछाई दिखी।
 
उसने समझा यही दूसरा सिंह है। तब पह जोर से गरजा। उसकी गरज के उत्तर में कुएं से दुगुनी गूंज सुनाई दी। उस का प्रतिपक्षी सिंह की गरज समझकर भासुरक उसी क्षण कुए में कूद पड़ा और वहीं जल में डूबकर उसने प्राण त्याग दिए।
 
खरगोश ने अपनी बुद्धिमत्ता से सिंह को हरा दिया। वहां से लौटकर वह वन्य जीवों की सभा में गया। उसकी चतराई जानकर और सिंह की मौत का समाचार सुनकर सभी जानवर प्रसन्नता से नाच उठे।
 
यह कहानी सुनाकर दमनक बोला-‘इसलिए मैं कहता हूं कि बलशाली वही है, जिसके पास बुद्धि है। अपनी बुद्धि के बल पर यदि तुम चाहो तो मैं संजीवक और पिंगलक में भी वैमनस्य उत्पन्न कर दो ?’
 
करटक बोला—’यदि आपको पूर्ण विश्वास है तो जाइए, ईश्वर आपकी मनोकामना पूरी करे।’ वहां से चलकर दमनक पिंगलक के पास आया। उस समय पिंगलक के पास संजीवक नहीं था।
 
पिंगलक ने दमनक को बैठने का संकेत करते हुए कहा-‘कहो दमनक ! बहुत दिन बाद दर्शन दिए ? दमनक बोला—’स्वामी ! अब आपको हमसे कुछ प्रयोजन ही नहीं रहा तो यहां आने से क्या लाभ ?
 
फिर भी आपके हित की बात कहने के लिए आपके पास आ जाता हूं। हित की बात पूछे बिना ही कह देनी चाहिए।’ पिंगलक ने कहा-‘जो कहना हो, निर्भय होकर कहो। मैं तुम्हें अभय-वचन देता हूं।’ ‘स्वामी !
 
संजीवक आपका मित्र नहीं, वैरी है। एक दिन उसने मुझसे एकांत में कहा था कि पिंगलक का बल मैंने देख लिया, उसमें विशेष शक्ति नहीं है। उसको मारकर और तुम्हें मंत्री बनाकर मैं इस जंगल के सभी पशुओं पर राज करूंगा।’
 
दमनक के मुख से उन वज्र जैसे कठोर शब्दों को सुनकर पिंगलक को ऐसा लगा, जैसे उसे मूच्छा आ गई हो। दमनक ने जब पिंगलक की यह हालत देखी तो सोचा, पिंगलक का संजीवक से प्रगाढ़ स्नेह है।
 
संजीवक ने इसे अपने वश में कर रखा है। जो राजा इस तरह मंत्री के वश में हो जाता है, वह नष्ट हो जाता है। यही सोचकर उसने पिंगलक के मन से संजीवक का जादू मिटाने का और भी पक्का निश्चय कर लिया।
 
पिंगलक ने होश में आकर किसी तरह धैर्य धारण करते हुए कहा-‘दमनक! संजीवक तो मेरा बहुत विश्वासपात्र सेवक है। उसके मन में मेरे प्रति वैर-भावना नहीं हो सकती।’ प्रत्युत्तर में दमनक ने कहा-‘स्वामी !
 
आज जो विश्वासपात्र है, वही कल विश्वासघात बन जाता है। राज्य का लोभ किसी के भी मन को चंचल बना सकता है। इसमें अनहोनी जैसी कोई बात नहीं। ‘ दमनक के यह सब कुछ कहने पर भी पिंगलक का संदेह दूर न हुआ।
 
उसने कहा–दमनक ! मेरे मन में कभी संजीवक के प्रति द्वेष भावना पैदा नहीं हुई। अनेक द्वेष होने पर भी प्रियजनों को नहीं छोड़ा जाता। जो प्रिय है, वह प्रिय ही रहता है। संजीवक भी मेरा प्रिय है।’
 
दमनक ने कहा-‘महाराज ! यही तो राज्य संचालन के लिए बुरा है। जिसे भी आप स्नेह का पात्र बनाएंगे, वही आपका प्रिय हो जाएगा। इसमें संजीवक की कोई विशेषता नहीं, विशेषता तो आपकी है।
 
आपने उसे अपना प्रिय बना लिया तो वह बन गया, अन्यथा उसमें गुण ही कौन-सा है ? आप यह समझते हैं कि उसका शरीर बहुत भारी है और शत्रु-संहार में आपका सहायक होगा तो यह के आपकी भूल है।
 
वह तो घास-पात खाने वाला जीव है। आपके शत्रु तो सभी मांसाहारी हैं, अतः उनकी सहायता से शत्रु-वश नहीं हो सकता। आज वह धोखे से आपको मारकर राज करना चाहता है।
 
अच्छा है कि उसका षड्यंत्र पकने से पहले ही उसको मार दिया जाए। ‘लेकिन दमनक।’ पिंगलक बोला—’जिसे हमने पहले गुणी मानकर अपनाया है, उसे राज्यसभा में आज निर्गुण कैसे कह सकते हैं ?
 
फिर तुम्हारे कहने पर ही तो मैंने उसे अभय-वचन दिया था। मेरा मन कहता है कि संजीवक मेरा मित्र है, मुझे उसके प्रति कोई क्रोध नहीं है। यदि उसके मन में कोई वैर-भाव आ भी गया है तो भी मैं उसके प्रति कोई द्वेष-भावना नहीं रखता।
 
भला अपने हाथों लगाया गया वृक्ष भी कभी काटा जाता है ? चतुर दमनक ने तुरंत उत्तर दिया-‘स्वामी ! यह आपकी भावुकता है। राजधर्म ज इसका आदेश नहीं देता। वैर-बुद्धि रखने वाले को क्षमा करना राजनीति की दृष्टि से मूर्खता है।
 
आपने उसकी मित्रता के वशीभूत होकर सारा राजधर्म भुला दिया है। आपकी राज्य के प्रति विरक्ति के कारण ही वन के अन्य पशु आपसे दूर हो गए हैं। सच तो यह है कि आपमें और संजीवक में मित्रता होना स्वाभाविक ही में नहीं है।
 
आप मांसाहारी हैं और वह निरामिषभोजी। यदि आप घास-पात खाने भी वाले को अपना मित्र बनाएंगे तो अन्य पशु आपको सहयोग करना बंद कर देंगे।
 
यह भी आपके राज्य के लिए बुरा होगा उसके संग रहने से आपकी प्रकृति में क ! भी व्हे दुर्गुण आ जाएंगे जो शाकाहारियों में होते हैं। आपको भी शिकार से अरुचि ह चना जाएगी।
 
आपका साथ तो आपकी प्रकृति के पशुओं के साथ ही होना चाहिए। इसलिए साधु लोग नीच का संग-साथ छोड़ देते हैं। एक खटमल को आश्रय देने के कारण ही एक जो मारी गई थी।
 Related:-
  • Short Stories in Hindi with Moral Values
  • Hindi Short Stories with Pictures
  • Moral Stories for Child in Hindi
  • Small Stories in Hindi with Moral
  • Child Hindi Moral Story Download

2. कुसंगति का परिणाम Moral Stories for Kids

किसी स्थान में एक राजा का अत्यंत मनोहर शयनगृह था। यहाँ राजा के व्यवहार में आने वाले वस्त्रों में दो स्वच्छ वस्त्रों की सीवन के बीच मंद विसर्पिणी नाम की एक यूका (ज) रहती थी राजा का खून पीती हुई थह बड़े आनंद से अपना समय व्यतीत कर रही थी।
 
एक दिन कहीं से घूमता-धाम अग्निमुख नाम का एक खटमल वहां आ पहुंचा। उसको देखकर बड़े खेद-भाव में बोली-‘अरे अग्निमुख ! तुम कहां से इस स्थान में आ गए ? इससे पहले कि कोई तुम्हें देखे, तुम यहां से तुरंत भाग जाओ।’
 
खटमल बोला-‘तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए घर में आए हुए मेहमान को तो कोई भी नहीं दुत्कारता, भले ही वह कितना ही दुए क्यों न हो। कहा भी गया है कि अभ्यागत के रूप में यदि कोई नीचजन भी आ जाए,
 
तो सज्जन व्यक्ति का यह कर्तव्य होता है कि उसे प्रेमभाव से उचित मान-सम्मान के साथ आदर भाव दे। धर्मशास्त्रों में भी ऐसा ही कहा गया है।’ ‘पर्मग्रंयों की बात तो ठीक हो सकती है,
 
जू बोली-‘किंतु मैं तो जब राजा सो जाता है तब धीरे से उसका रक्त चूसती है। तुम तो अग्निमुख हो और स्वभाव से ही चपल हो। यदि स्वयं पर नियंत्रण रख सको तो बात दूसरी है,
 
अन्यथा यहां से तुरंत भाग जाओ।’ खटमल बोला-‘तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा ही करूंगा। मैं अपने देवता और गुरु की सौगंध खाकर कहता है कि जब तक तुम राजा के रक्त का आस्वादन कर तृप्त नहीं हो जाओगी और मुझको आज्ञा नहीं दोगी, तब तक मैं शांत बैठा रहूंगा।’
 
पर खटमल हो खटमल ही होता है, उसमें धैर्य कहां? राजा के लेटने पर कुछ क्षण तो वह उसके सोने की प्रतीक्षा करता रहा, किंतु जब अधिक प्रतीक्षा करना उसके लिए असहा हो गया तो उसने राजा का भक्ति चूसना आरंभ कर दिया।
कुसंगति का परिणाम Moral Stories for Kids
किसी के स्वभाव को उपदेश द्वारा तो बदला नहीं जा सकता। जल को चाहे कितना ही खौला लिया जाए, आग से उतरने के कुछ समय बाद वह ठंडा हो ही जाता है। बस, ज्योंही खटमल ने देश मारा, राजा तिलमिलाकर उठ बैठा।
 
उसने अपने सेवकों से कहा-‘देखो, इस बिस्तर में कहीं कोई खटमल तो नहीं छिपा है?’ राजा के उठते ही खटमल तो चारपाई की किसी संधि में जा छिपा,
 
और जब सेवकों ने ध्यान से बिस्तर को देखना आरंभ किया तो मंद विसर्पिणी नामक वह जूं दिखाई दे गई। बस फिर क्या था एक सेवक ने उसे पकड़ा और मसलकर मार दिया।
 
यह कथा सुनाकर दमनक ने कहा-‘इसलिए मैं कहता हूं कि जिस व्यक्ति के स्वभाव की जानकारी न हो, उसे आश्रय नहीं देना चाहिए।
 
क्योंकि जो व्यक्ति अंतरंगजनों को छोड़ देता है और अन्य बाहरी जनों को अंतरंग बनाकर अधिकार सम्पन्न कर देता है, वह मूर्ख चंडख की तरह कटकर मृत्यु को प्राप्त होता है।’
Related:-
  • Story in Hindi with Moral PDF
  • Akbar Birbal Kids Story in Hindi
  • Best Akbar Birbal ki Kahani Hindi
  • Akbar Birbal Story in Hindi with Moral
  • Educational Stories in Hindi

3. रंगा हुआ सियार Animals Stories in Hindi for Children

रंगा हुआ सियार Animals Stories in Hindi for Children
किसी वन में चंडख नाम का एक गीदड़ रहता था। एक दिन भूख से व्याकुल होकर लोभवश वह किसी नगर के बीच चला गया उसको देखते ही कुत्तों ने उसे घेर लिया और जोर-जोर से भौंकते हुए उस पर टूट पड़े।
 
उन्होंने अपने तेज दांतों से चंडख को जगह-जगह से काट लिया। अपनी जान बचाने के लिए गीदड़ निकटवर्ती जो भी पहला मकान दिखाई दिया, उसी में घुस गया। वह मकान किसी धोबी का था।
 
धोबी ने कपड़ों में लगाने के लिए एक बड़ी-सी नांद में नील घोलकर रखा हुआ था। कुत्तों से भयभीत गीदड़ उसी नांद में कूद पड़ा। जब वह नांद से बाहर निकला तो उसका सारा शरीर नील में रंगकर नीला हो चुका था।
 
चंडख भी बेतहाशा जंगल की ओर दौड़ पड़ा और उसने जंगल के बीच जाकर ही दम लिया। रंगा हुआ चंडख जब वन में पहुंचा तो सभी पशु उसे देखकर चकित रह गए। वैसे रंग का जानवर उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था।
 
इस प्रकार के विचित्र पशु को देखकर साधारण जंगली जीव तो क्या; शेर, चीता तक भय से इधर-उधर भागने लगे। उनका भयभीत होना स्वाभाविक ही था, क्योंकि कहा भी गया है कि जिसके स्वभाव और शक्ति का ज्ञान न हो,
 
उससे दूर ही रहना अच्छा। जंगली जीवों को इस प्रकार भयभीत होते देखकर गीदड़ ने उन्हें सम्बोधित करते हुए कहा-‘तुम लोगों को मुझे देखकर इस प्रकार भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। मुझसे डरो मत ।
 
प्रजापति ब्रह्मा ने आज मुझे यहां भेजते समय यह आदेश दिया है कि वन्य पशुओं का इस समय कोई राजा नहीं है, इसलिए वह वहां का राज्य मुझे सौंप रहे हैं। अब तुम लोग मेरी छत्रछाया में रहकर आनंद करो।
 
महाराज कुटुम के नाम से मैं तीनों लोकों में पशुओं का राजा विख्यात हो चुका हूं।’ यह सुनकर सिंह, व्याघ्र आदि सभी वन्य-प्राणी उसे स्वामी, प्रभो,
 
रंगा हुआ सियार Animals Stories in Hindi for Children
 
इत्यादि सम्बोधन कर उसके समीप मंडराने लगे तब उसने सिंह को अपना मंत्री, व्याघ्र को शैया पालक तथा चीते को पान लगाने के काम पर लगाया।
 
भेड़िए को द्वारपाल नियुक्त किया किंतु स्वजातीय गीदड़ों से उसने बात तक न की उनको अपने राज्य से बाहर निकाल दिया। कुछ दिन तो उसका राज्य शांतिपूर्वक चलता रहा, किंतु एक दिन बड़ा अनर्थ हो गया।
 
उस दिन चंडख को दूर से घोड़ों की ‘हुआं-हुआं’ की आवाजें सुनाई दी। उन आवाजों को सुनकर चंडख का रोम-रोम खिल उठा और वह भी स्वभाववश ‘हुआहुआ’ की आवाजें अपने मुख से निकालने लगा।
 
शेर-बाघ आदि हिंसक पशुओं ने जब उसके मुंह से निकलती गीदड़ की आवाज सुनी तो वे समझ गए कि यह कोई ब्रह्मा का दूत नहीं, मामूली-सा गीदड़ है।
 
चंडख भी समझ गया कि अब उसकी पोल खुल गई है और अब जान बचाना कठिन है, इसलिए वह वहां से भागा। किंतु सिंह से बचकर जाता कहां? एक ही क्षण में सिंह ने उसे खंड-खंड कर डाला।
 
यह कथा सुनाकर दमनक ने कहा-‘इसलिए मैं कहता हूँ जो आत्मीयों का दुत्कारकर परायों को गले लगाता है, उसका सर्वनाश हो जाता है।’ पिंगलक का संशय फिर भी दूर न हुआ।
 
उसने पूछा-‘आखिर क्या प्रमाण है कि संजीवक मेरे प्रति विद्रोह कर रहा है ?’ ‘इसका प्रमाण आप स्वयं अपनी आंखों से देख लेना महाराज।’ दमनक बोला-‘आज सुबह उसने मुझसे यह भेद प्रकट किया है कि कल वह आपका वध करेगा।
 
कल यदि आप उसे दरबार में लड़ाई के लिए तैयार देखें, उसकी आंखें लाल हों, होंठ फड़कते हों, एक ओर बैठकर आपको क्रूर दृष्टि से देख रहा हो, तब आपको मेरी बात पर स्वयं ही विश्वास हो जाएगा।
 
पिंगलक को उकसाने के बाद दमनक संजीवक के पास पहुंचा। उसे घबराई मुद्रा में देखकर संजीवक ने पूछा-‘मित्र ! क्या बात है ? बहुत दिन बाद आए। कुशलता तो है ? दमनक बोला-‘तुम्हें अपना मित्र कहा है अतः बताए देता हूं।
 
बात यह है कि पिंगलक के मन में आपके प्रति पाप-भावना आ गई है आज उसने मुझसे बिल्कुल एकांत में बुलाकर कहा है कि वह कल सुबह तुम्हें मारकर अपनी और अन्य मांसाहारी जीवों की भूख मिटाना।”
 
दमनक की बात सुनकर संजीवक सन्न रह गया। उसे मूर्छा सी आ गई। जब वह कुछ चैतन्य हुआ तो वैराग्य-भरे शब्दों में बोला—’निश्चय ही पिंगलक के समीप रहने वाले जीवों ने ईर्ष्यावश उसे मेरे विरुद्ध उकसा दिया है।
 
सेवकों में स्वामी की प्रसन्नता पाने की होड़ तो लगी ही रहती है। वे एक-दूसरे की वृद्धि सहन नहीं कर सकते।’ दमनक ने कहा-‘मित्र! यदि ऐसी ही बात है तो तुम्हें डरने की कोई आवश्यकता नहीं।
 
दूसरों की चुगली से रुष्ट होने पर भी वह तुम्हारी वाक्चातुरी से तुम पर प्रसन्न ही होगा।’ ‘नहीं मित्र । ऐसी बात नहीं है।’ संजीवक ने कुछ उदास स्वर में कहा—’दुष्ट भले ही छोटे क्यों न हों, उनके मध्य भले व्यक्ति का रहना उचित नहीं है।
 
किसी न किसी उपाय से वे उस सज्जन व्यक्ति को मार ही डालते हैं। कहा भी गया है कि जब बहुत-से धूर्त, क्षुद्र तथा मायावी जीव एकत्रित हो जाते हैं तो वे कुछ-न-कुछ करते ही हैं। चाहे वह उचित हो या अनुचित हो। इसी प्रकार कौए आदि क्षुद्र जीवों ने मिलकर एक बड़े ऊंट को मार डाला था।’
 
Also Read:-
  • विष्णुरूपी जुलाहा Bhagwan ki Kahaniya
  • Best Akbar Birbal Story Hindi
  • Child Story in Hindi Free Download
  • Story in Hindi with Images for Kids
  • Funny Story in Hindi with Moral
Thank you for reading Amazing Animal Stories in Hindi with Moral which really helps you to learn many things of life which are important nowadays these Animal Stories in Hindi with Moralare very helping full for children those who are under 18. If you want more stories then you click on the above links which are also very interesting.
 
Share. Facebook Twitter Pinterest LinkedIn Reddit Telegram WhatsApp Email
Previous Articleटिटिहरी और समुद्र Kids Birds Stories in Hindi हिंदी में 2023
Next Article 3 Best Hindi Stories for Story Telling Competition (दूरदर्शन बनो) 2023
Ankit

Hey there! I'm Ankit, your friendly wordsmith and the author behind this website. With a passion for crafting engaging content, I strive to bring you valuable and entertaining information. Get ready to dive into a world of knowledge and inspiration!

Related Post

Unlock Wisdom with 5 Lines Short Stories with Moral PDF – Engaging Lessons for All Ages!

November 13, 2023

Explore the Rich Tapestry of “Short Story in Hindi” – A Collection of Engaging Narratives

November 13, 2023

The Shepherd Boy and the Wolf Story in Hindi: A Timeless Tale of Wisdom and Deception

November 13, 2023

Comments are closed.

Most Popular

How to Make Money With Social Trading: Tips For Successful Investment

November 25, 2023

14 Ways to Be a Good Streamer on YouTube

November 25, 2023

The 24/7 Availability of Herbal: One of the Many Perks of Buying Online

November 25, 2023

Laboratory-Grown Diamonds and the Creation Process

November 24, 2023
Hindimein.in © 2023 All Right Reserved
  • Home
  • Disclaimer
  • Privacy Policy
  • Contact Us
  • Sitemap

Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.