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सपने की व्याख्या New Story in Hindi with Moral
एक दिन, बादशाह अकबर दरबार में बड़ी गम्भीर मुद्रा में बैठे किसी समस्या पर विचार कर रहे थे। बादशाह के आसन के पास ही कुछ ज्योतिषी बैठे हुए मंत्रणा में लगे हुए थे।
उनके चेहरों से भी तनाव झलक रहा था। तभी, बीरबल ने दरबार में प्रवेश किया। वहाँ का दृश्य देखते ही वे समझ गए कि मामला कुछ गम्भीर है। बादशाह के पास पहुँचकर उन्होंने अभिवादन किया और पूछा, “जहांपनाह, बात क्या है? आज आप बड़े चिंतित दिखाई दे रहे हैं।
आप मुझे बताइए। शायद मैं आपकी चिंता कुछ कम कर सके।” “बीरबल, कल मैंने एक बहुत ही बुरा सपना देखा। मैंने देखा कि एक को छोड़कर मेरे सभी दाँत गिर गए हैं।
मैंने इन सभी ज्योतिषियों को उस सपने का अर्थ बताने के लिए बुलाया है।” बादशाह ने बताया। “अच्छा, अच्छा!” बीरबल को सारी बात समझ में आ गई थी।
तभी बादशाह ने ज्योतिषियों से पूछा, “हाँ जी, तुम लोगों के गुणा-भाग का कोई नतीजा निकला या नहीं।” “निकला है, हजूर। हम सब ज्योतिष आपस में सलाह-मशविरा करके इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि जहांपनाह के सारे रिश्तेदारों की मौत उनसे पहले ही हो जाएगी।
यही इस सपने का अर्थ है।” एक ज्योतिषी बोला। उस ज्योतिषी की बात सुनकर वहाँ मौजूद सभी दरबारी भौचक्के रह गए। दरबार में सन्नाटा छा गया था और सभी लोग सकपकाए हुए से बादशाह की ओर ही देख रहे थे।
वे डर रहे थे कि कहीं बादशाह का दुख क्रोध में न बदल जाए। ज्योतिषियों की तो हालत खराब हो रही थी। बादशाह के माथे पर बल पड़ गए थे और मुट्ठियाँ भिंच गई थीं।
बीरबल ने तुरंत हालात संभालने का फैसला कर लिया। वे बादशाह से बोले, “हजरे आला! मैं भी सपनों का अर्थ निकालने की विद्या थोड़ी-बहुत जानता हूँ।
मुझे लगता है कि इन ज्योतिषियों ने आपके सपने का गलत अर्थ निकाला है। अगर इजाजत हो तो मैं भी इस सपने के बारे में कुछ अर्ज करू?”
“बोलो बोलो, बीरबल,” बादशाह के चेहरे पर कुछ चमक आ गई थी, “तुम्हारे ख्याल से मेरे सपने का क्या अर्थ हो सकता है?” “बंदापरवर, मेरे विचार से आपके सपने का अर्थ है कि आप दीर्घायु हैं।
आप अपने सभी रिश्तेदारों से कहीं लम्बे वक्त तक जीवित रहेंगे और यह साम्राज्य आपकी हुकूमत के तले रोशन होता रहेगा।” बीरबल की बात सुनकर अकबर के चेहरे पर रौनक आ गई और वे मुस्कुराने लगे।
बीरबल ने उनके सपने की एक नए दृष्टिकोण से व्याख्या करके पूरा वातावरण ही परिवर्तित कर दिया था। बादशाह ने न सिर्फ बीरबल को पुरस्कृत किया, बल्कि ज्योतिषियों को भी यथायोग्य सम्मान और इनाम देकर विदा किया। सभी ज्योतिषी बीरबल की बुद्धिमत्ता की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए अपने घर गए।
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घोड़ों का भुगतान Latest Story in Hindi with Moral
एक बार घोड़ों का एक सौदागर बादशाह अकबर के दरबार में आया। बादशाह का अभिवादन करके वह बोला, “हिंदुस्तान के शहंशाह! मैं अरब से खासतौर पर आपके लिए चुनिंदा नस्ल के कुछ घोड़े लेकर आया हूँ।
आपसे गुजारिश है कि एक बार उन घोड़ों को देख जरूर लें।” अकबर घुड़सवारी के बहुत शौकीन थे और अच्छी नस्ल के घोड़ों को तो वे बहुत पसंद करते थे।
वे तुरंत उस सौदागर के साथ घोड़ों को देखने चल दिए। सौदागर ने एक-एक घोड़े के बारे में उन्हें विस्तार से बताया। बादशाह को वे घोड़े इतने पसंद आए कि उन्होंने उसी समय वे सभी घोड़े खरीद लिए और उस तरह के और भी घोड़े लाने के लिए सौदागर को पेशगी धन भी दे दिया।
सौदागर वह सारा धन लेकर चलता बना। महीनों गुजर गए, लेकिन वह सौदागर दोबारा दिखाई नहीं दिया। वह इस तरह मुगल सल्तनत से गायब हुआ था, जैसे गधे के सिर से सींग।
बीरबल के बादशाह द्वारा एक अनजान सौदागर को पेशगी धन देने की बात ठीक नहीं लगी थी, लेकिन वे चुप रहे थे। बादशाह के पास दौलत की कोई कमी तो थी नहीं।
धीरे-धीरे वे उस सौदागर और उसको दिए गए धन के बारे में पूरी तरह भूल गए। एक दिन बादशाह मजाक के मूड में थे। अपनी ही उमंग में उन्होंने बीरबल से आगरा के सभी मर्दों की एक सूची बना लाने को कहा।
बीरबल को बादशाह का ध्यान उनकी भूल की ओर खींचने का यह एक अच्छा मौका मिल गया। उन्होंने सूची तैयार की और एक सेवक के हाथों बादशाह के पास भिजवा दी।
बादशाह बड़ी दिलचस्पी के साथ वह सूची सेवक से लेकर पढ़ने लगे। अचानक वह चौंक पड़े और उनके माथे पर क्रोध की लकीरें खिंच गई। उन्होंने तुरंत एक सेवक को बीरबल को बुला लाने का आदेश दिया।
थोड़ी ही देर में बीरबल वहाँ आ गए। “बीरबल,” बादशाह उन्हें देखते ही क्रोध से बोले, “तुमने मेरा नाम इस सूची में सबसे ऊपर क्यों डाला है?” “यह देखकर, बादशाह सलामत, कि उस चालाक घोड़ों के सौदागर ने कितनी आसानी से आपको ठग लिया!”
बीरबल सिर झुकाकर बोले। “क्या मतलब है तुम्हारा? अगर उस सौदागर ने मेरे सीधेपन का फायदा उठा लिया, तो क्या इसका मतलब यह है कि मैं मूर्ख हूँ?” बादशाह बोले।
“लेकिन हुजूर, क्या एक अजनबी सौदागर पर इस तरह भरोसा करना ठीक था? कम से कम आप उसे पैसा देने से पहले उसकी अच्छी तरह जाँच करवा सकते थे।
आप शहंशाह हैं और आपके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है।” बीरबल ने अपनी बात साफ की। “और अगर वह सौदागर लौट आया तो…?” बादशाह ने पूछा।
“तो मैं इस सूची से आपका नाम हटाकर उसका नाम डाल दूंगा।” बीरबल ने छूटते ही जवाब दिया। बादशाह चुप रहे, क्योंकि वे अपनी गलती समझ गए थे। उन्होंने फैसला कर लिया कि भविष्य में वे कभी इस तरह की जल्दबाजी नहीं करेंगे।
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बीरबल की बुद्धिमानी Amazing Story in Hindi with Moral
बादशाह अकबर अक्सर बीरबल से अजीबो-गरीब सवाल पूछकर उनकी बुद्धिमत्ता की परीक्षा लेते रहते थे। एक बार वे बीरबल के साथ महल के बगीचे में घूमने निकले।
तभी उन्हें बीरबल की होशियारी का इम्तिहान लेने की सूझी। उन्होंने जमीन पर एक रेखा खींच दी और बीरबल से कहा, “इस रेखा को बिना मिटाए या काटे छोटा कर दो तो जानें।
वरना हम तुमको बीरबल क्यों मानूं?” बीरबल ने तुरंत उस रेखा के बगल में उससे भी लम्बी रेखा खींच दी, जिससे बादशाह द्वारा खींची गई रेखा अपने आप छोटी हो गई।
बीरबल की होशियारी देखकर बादशाह हैरान रह गए। लेकिन इस बार वे सवालों का तरकश साथ लेकर आए थे। “वह क्या है जिसे सूरज नहीं देख सकता?” बादशाह ने दूसरा सवाल दागा।
“अंधेरा, हुजूर!” बीरबल ने तुरंत जवाब दिया। जवाब आने में एक पल का समय भी नहीं लगा था। “सच और झूठ में क्या अंतर है?” बादशाह का अगला सवाल था।
“उतना ही अंतर है, जितना देखने और सुनने में है। आदमी जो सुनता है, वह झूठ भी हो सकता है, लेकिन देखी हुई बात सच ही होती है।” बीरबल बोले।
बीरबल के जवाब सुनकर बादशाह बहुत खुश हुए और उन्होंने बीरबल की होशियारी की जमकर तारीफ करते हुए उन्हें उपहारस्वरूप एक नौलखा हार दिया।
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सीढ़ियाँ और चूड़ियां Awesome Story in Hindi with Moral
पुरा दिन दरबार में सरकारी कामकाज निपटाने के बाद बादशाह अकबर बीरबल के साथ हास-परिहास करके अपनी थकान मिटा रहे थे। बातों ही बातों में उन्होंने बीरबल से पूछा, “बीरबल, मुझे बताओ कि तुम्हारी बीवी अपने हाथों में कितनी चूड़ियां पहनती है।
तुम्हें तो हर चीज की जानकारी रहती है। इसलिए मुझे भरोसा है कि तुम्हें यह भी पता होगा।” बीरबल बादशाह के इस सवाल का जवाब तुरंत नहीं दे सके,
क्योंकि उन्होंने कभी अपनी पत्नी की चूड़ियाँ गिनी ही नहीं थीं। वैसे भी उन्हें कोई सपना तो आया नहीं था कि बादशाह उनसे अचानक ऐसा सवाल पूछ बैठेंगे।
“यह क्या, बीरबल? तुम्हें अपने घर की इतनी छोटी सी जानकारी भी नहीं है। वैसे तो तुम बड़े होशियार बने घूमते हो।” बादशाह मजा लेते हुए बोले। आज उन्हें बहुत दिनों बाद बीरबल की खिंचाई करने का मौका मिला था।
लेकिन बीरबल कम थोड़े ही थे। उन्हें ज्यादा देर तक लाजवाब रखना किसी के भी बस की बात नहीं थी। उन्होंने भी सवाल दागा, “जहांपनाह, क्या आप अपनी फौज में सिपाहियों की संख्या बता सकते हैं?”
“क्यों नहीं? दो लाख,” बादशाह ने भी तुरंत जवाब दिया। “क्या आप अपने दरबार में रत्नों की संख्या बता सकते हैं?” बीरबल ने दूसरा सवाल पूछा। “नौ,” बादशाह ने जवाब दिया।
“क्या आप अपने महल की सीढ़ियों की संख्या बता सकते हैं?” बीरबल का तीसरा सवाल था। यह सवाल सुनकर बादशाह बगलें झाँकने लगे, क्योंकि उन्होंने कभी अपने महल की सीढ़ियाँ गिनी ही नहीं थीं।
“जहांपनाह,” बीरबल ने अपनी बात आगे बढ़ाई, “आप रोज अपने महल की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं, लेकिन फिर भी आपको सीढ़ियों की संख्या मालूम नहीं है। जबकि सेना में सैनिकों की संख्या या रत्नों की गिनती आपको अच्छी तरह पता है।
ऐसा क्यों?” बादशाह चुप रहे। उनके पास बीरबल के सवाल का कोई जवाब नहीं था। “इसका कारण यही है कि मनुष्य हमेशा महत्वपूर्ण चीजों को ही याद रखता है।
मेरी बीवी कितनी चूड़ियां पहनती है, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है। यही वजह है कि मैंने कभी चूड़ियों की गिनती ही नहीं की।” बीरबल ने बात पूरी की। चतर बीरबल एक बार फिर बादशाह पर भारी पड़े थे। बादशाह ने बीरबल की होशियारी का लोहा मान लिया।
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फारस का शेर Lion Story in Hindi with Moral
फारस के बादशाह और अकबर के बीच बड़े ही दोस्ताना रिश्ते थे। दोनों ही अक्सर एक-दूसरे को कीमती तोहफे भेजते रहते थे। वे दरबारियों की होशियारी की परीक्षा लेने के लिए एक-दूसरे को पहेलियाँ भी भेजा करते थे।
एक दिन, फारस के बादशाह का दूत एक तोहफे के साथ बादशाह अकबर के दरबार में आया। बादशाह को आदाब करके उसने उन्हें फारस के बादशाह का संदेश सुनाया और फिर उनके सामने अपने तोहफे को पेश करने की इजाजत मांगी।
इजाजत मिलने पर वह तोहफा दरबार में लाया गया। उस तोहफे को देखकर सभी दरबारी सन्न रह गए। वह दरअसल एक बड़ा पिंजरा था, जिसमें एक शेर था।
कुछ देर बाद ही दरबारी समझ सके कि वह कोई वास्तविक शेर नहीं, बल्कि एक मूर्ति थी। मूर्ति इतनी सजीव थी कि कोई भी उसे देखकर, कुछ देर के लिए, उसे असल का शेर ही समझता।
तभी, फारस के दूत ने अपने बादशाह का एक और संदेश सुनाया,”शेर को बाहर निकालने के बाद मेरा पिंजरा लौटा दिया जाए।”
“इसमें कोई मुश्किल नहीं,” बादशाह अकबर बोले,”पिंजरे का दरवाजा खोलकर शेर की मूर्ति बाहर निकाल लो और पिंजरा वापिस कर दो।”
लेकिन जब दरबारी पिंजरे के पास पहुंचे तो यह देखकर हैरान रह गए कि पिंजरे में कोई दरवाजा तो है ही नहीं। सारे दरबारी एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे जब पिंजरे में कोई दरवाजा ही नहीं है, तो शेर को बाहर कैसे निकाला जाए?
कुछ दरबारी बोले कि शेर को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर निकाल लिया जाए। लेकिन कुछ का कहना था कि शेर किसी मजबूत धातु का बना होगा और इस तरह उसे तोड़ना आसान ना होगा।
बादशाह अकबर और सभी दरबारियों के माथे पर बल पड़े हुए थे और वे इस पहेली का अर्थ खोज निकालने की कोशिश कर रहे थे लेकिन बहुत देर सोचने के बाद भी उनकी समझ में कोई समाधान नहीं आया।
उधर फारस का दूत चुपचाप एक ओर खड़ा दरबारियों की हालत देखकर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। जब बहुत देर तक कोई समाधान नहीं निकल सका, तो बादशाह ने बीरबल को बुला भेजा।
बीरबल के आने पर वे उनसे बोले, “फारस के बादशाह चाहते हैं कि इस पिंजरे को तोड़े बिना यह शेर बाहर निकाल लिया जाए। अब तुम्हीं बताओ कि क्या ऐसा करना सम्भव है।”
बादशाह की बात सुनकर बीरबल उस पिंजरे का बड़ी बारीकी से निरीक्षण करने लगे। फिर उन्होंने उस शेर को गौर से देखा। कुछ क्षण विचार करने के बाद वे उस शेर को खरोंचकर देखने लगे।
वे समझ गए कि वह शेर मोम का बना हुआ है। देखने वालों को भ्रम में डालने के लिए उस पर सिर्फ धातु की पतली परत चढ़ा दी गई थी। “यह काम हो जाएगा, जहांपनाह।
लेकिन इसके लिए मुझे कल तक का समय दीजिए।” बीरबल बोले। उनकी आँखें चमक रही थीं। “वक्त की तो कोई दिक्कत नहीं है। तुम बस, यह समस्या सुलझा दो।”
कहते हुए बादशाह ने उस दिन का दरबार खत्म कर दिया। अगले दिन बीरबल लकड़ी के हत्थों वाली लोहे की कुछ छड़ों को लेकर दरबार में आए। उन्होंने नौकरों को उन छड़ों को गर्म करके लाल करने का आदेश दिया। जब यह काम हो गया,
तो वे उन छड़ों को उस शेर के शरीर में घुसेड़ने लगे। बादशाह अकबर और सभी दरबारी बीरबल को यह सब करते हुए बड़े ध्यान से देख रहे थे। वे गर्म बड़े शेर के शरीर में डालते ही मोम पिघलने लगा।
जल्दी ही सारा मोम पिंजरे के बाहर आ गया। बादशाह अकबर मुस्कुरा रहे थे। जिस पहेली को वे बहुत कठिन समझ रहे थे, उसे तो बीरबल ने अपनी बुद्धिमत्ता से बड़ी आसानी से सुलझा दिया था।
बीरबल ने फारस के बादशाह की खुद को श्रेष्ठ दिखाने की योजना पर पानी फेर दिया था। बादशाह ने बीरबल की होशियारी की जमकर तारीफ की और कीमती उपहारों से उन्हें लाद दिया।
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वफादार नौकर Unique Story in Hindi with Moral
बादशाह अकबर अपने महल में बीरबल के साथ बैठे भोजन कर रहे थे। उस दिन, उन्हें बैंगन की सब्जी परोसी गई थी। बादशाह पूरा स्वाद लेकर भोजन कर रहे थे और बैंगन की खूब तारीफ किए जा रहे थे।
“बैंगन की सब्जी से स्वादिष्ट तो कोई सब्जी ही नहीं है।” अकबर ने कहा। “हुजूर ने बिल्कुल सही फरमाया,” बीरबल तुरंत बोले, “यह निश्चय ही बहुत स्वादिष्ट सब्जी है।”
बादशाह तुरंत नौकर को बुलाकर बोले,”बीरबल के लिए थोड़ी और सब्जी लाओ।” “नहीं, नहीं,” बीरबल हाथ हिलाते हुए बोले, “मेरे लिए बैंगन मत लाओ। दरअसल बैंगन मुझे कोई खास पसंद नहीं हैं।”
बीरबल की बात सुनकर बादशाह हैरान रह गए और बोले, “बीरबल, तुम तो बेपेंदी के लोटे हो। अभी तो तुम कह रहे थे कि बैंगन बहुत स्वादिष्ट होते हैं।” “कह रहा था, हुजूर!” बीरबल बोले, “का नौकर जो ठहरा।
दरअसल जहांपनाह, मैं आपका नौकर हूँ, बैंगन का थोड़े ही हूँ।” “अच्छा!” बादशाह बीरबल की ओर देखते हुए मुस्कुरा रहे थे। “आपने बैंगन की तारीफ की तो मैंने आपकी हाँ में हाँ मिलाई।
लेकिन जब आप मेरे लिए फिर से बैंगन मंगाने लगे तो मैंने मना किया, क्योंकि बैंगन का स्वाद मुझे दरअसल पसंद ही नहीं है।” बीरबल ने कहा। बीरबल की बात सुनकर बादशाह अकबर ठहाके लगाने लगे।
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वादा याद रखो with Moral Interesting Story in Hindi
एक दिन एक गरीब आदमी बादशाह अकबर के दरबार में आया और गिड़गिड़ाने लगा, “हिंदुस्तान के मालिक, मैं आपकी एक गरीब रियाया हूँ। किस्मत की मार से, मैं इतना गरीब हो गया हूँ कि मेरे पास खाने को भी नहीं है।
आपसे गुजारिश है कि मेरी मदद करके मुझे इस मुसीबत से बचाइए।” बादशाह ने उसे उसकी मदद करने का भरोसा दिलाया। लेकिन इसके बाद वे सरकारी कामकाज में लग गए और अपना वादा उन्हें याद नहीं रहा।
एक दिन वे शाम को बीरबल के साथ सड़कों पर टहल रहे थे। तभी उनकी नजर एक ऊँट पर पड़ी। वे मजाक में बीरबल से पूछ बैठे, “बीरबल, क्या तुम बता सकते हो कि ऊँट के गले की बनावट इतनी अजीबोगरीब क्यों होती है?
आखिर इसका कसूर क्या है जो खुदा ने इसे ऐसा बनाया?” “हजर.” बीरबल बोले. “मैंने एक महात्मा से सुना था कि जो लोग अपना वादा भूल जाते हैं, उन्हें भगवान किसी न किसी तरीके से दंडित करते हैं।
हो सकता है कि ऊँट अपना कोई वादा भूल गया हो और इसके बदले भगवान ने इसे ऐसा रूप दे दिया हो।” बीरबल की बात सुनकर बादशाह को याद आ गया कि उन्होंने किस तरह दरबार में आए उस गरीब आदमी की मदद करने का वादा किया था और बाद में उसे भूल गए थे।
बादशाह समझ गए कि ऊँट के गले की बनावट के बहाने बीरबल उन्हें क्या याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। अगले ही दिन उन्होंने उस गरीब आदमी के जीवनयापन की पूरी व्यवस्था किए जाने का आदेश दे दिया।
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दिमाग की पहचान Akbar Birbal Story in Hindi with Moral
बादशाह अकबर सुबह सोकर उठने के बाद दरबार में जाने के लिए तैयार हो रहे थे। दर्पण में अपना चेहरा देखने के बाद वे चौंके जैसे उन्हें कुछ याद आ गया हो। वे तुरंत एक नौकर को बुलाकर बोले, “जाकर उसे बुला लाओ।”
नौकर को यह आदेश देकर वे महारानी जोधाबाई के साथ कुछ वार्तालाप में लग गए। महारानी जोधाबाई कुछ दिनों पहले ही अजमेर शरीफ से लौटकर आई थीं। वे बादशाह को वहाँ के हाल सुनाने लगीं।
उधर नौकर बादशाह के हुक्म की तामील करने के लिए तुरंत महल से निकल गया। बाहर जाकर उसे ध्यान आया कि उसने बादशाह से यह तो पूछा ही नहीं है कि बुलाना किसे है।
अब तो वह परेशान होने लगा। वह दोबारा बादशाह के पास जाकर यह पूछना नहीं चाहता था, क्योंकि उसे डर था कि कहीं बादशाह नाराज न होने लगें। आखिर वह एक मामूली नौकर था और बादशाह से दूसरी बार एक ही सवाल करने का साहस उसमें नहीं था।
वह दूसरे नौकरों से पूछने लगा कि बादशाह दरअसल किसे बनाना चाह रहे होंगे। लेकिन दूसरे नौकर उसे यह बात न बता सके। आखिरकार, एक नौकर ने उसे सलाह दी, “तुम्हें बीरबल के पास जाना चाहिए।
सिर्फ वे समझते हैं कि बादशाह के दिमाग में किस समय क्या चल रहा होता है।” नौकर तुरंत बीरबल के घर जा पहुँचा और उन्हें पूरी बात कह सुनाई। उसकी बात सुनकर बीरबल सोच में पड़ गए।
कुछ देर बाद उन्होंने नौकर से पूछा, “जब बादशाह सलामत ने तुम्हें ये हुक्म दिया, उस समय वे क्या कर रहे थे? इससे मैं अंदाज लगा सकूँगा कि उनकी इच्छा क्या रही होगी।”
“उस वक्त वे दरबार में जाने के लिए तैयार हो रहे थे।” नौकर ने बताया। “मैं सब समझ गया। तुम नाई को साथ लेकर महल में पहुँच जाओ।” बीरबल तुरंत बोले। वे समझ गए थे कि बादशाह के सिर और दाढ़ी के बाल बड़े हो गए होंगे।
जब बादशाह ने दर्पण में अपना चेहरा देखा होगा, तो उनका ध्यान इस तरफ गया होगा और उन्होंने नौकर को यह हुक्म दे दिया होगा। जल्दबाजी में वे पूरी बात कहना भूल गए होंगे।
उधर महल में बादशाह को याद आया कि उन्होंने नौकर को यह तो बताया ही नहीं था कि उसे लाना किसे है। वे उसके पीछे एक दूसरे नौकर को भेजने वाले थे कि तभी वह साथ में एक नाई को लिए वहाँ जा पहुँचा।
बादशाह भी दरअसल नाई को ही बुलवाना चाहते थे। लेकिन वे यह नहीं समझ सके कि आखिर नौकर को यह बात बिना बताए समझ कैसे आ गई। वह नौकर इतना बुद्धिमान तो था नहीं।
बादशाह को बड़ी हैरत हो रही थी। “तुम्हें यह कैसे पता चला कि मैं नाई को बुलवाना चाहता हूँ। मैंने तो तुम्हें यह बात बताई ही नहीं थी।” बादशाह ने नौकर से पूछा। “हुजूरे आला! दरअसल, मैं आपका हुक्म समझने में नाकामयाब रहा था।
मुझे तो बीरबल साहब ने बताया कि आपकी मंशा क्या थी।” नौकर ने बात साफ की। बादशाह मन ही मन बीरबल की होशियारी की तारीफ किए बिना नहीं रह सके।
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मोमबत्ती दान और मृत्युदंड Children Story in Hindi with Moral
बादशाह अकबर को मोमबत्ती दानों से बड़ा लगाव था। उन्होंने भाँति-भांति के सुंदर मोमबत्ती दान अपने महल में सजा रखे थे। उन्होंने अपने इस शौक को पूरा करने के लिए दुनिया भर के देशों से विविध आकार-प्रकार के मोमबत्ती दान मँगवाए थे जो उनके भव्य महल की शोभा थे
। उस महल की स्वच्छता व व्यवस्था का ध्यान रखने वाले सेवकों को अकबर ने निर्देश दे रखा था कि वे बहुत ही सावधानी के साथ काम करें ताकि किसी मोमबत्तीदान को कोई नुकसान न पहुंचे।
एक दिन जब एक सेवक महल की सफाई में लगा हुआ था, तभी इत्तेफाक से उसका हाथ एक मोमबत्तीदान से टकरा गया और वह नीचे गिरकर टूट गया। सेवक तो भय के कारण थर-थर काँपने लगा।
अब तो उसे यही चिंता सता रही थी कि न जाने उसे क्या दंड मिलेगा। जब अकबर को इस बात की सूचना मिली कि उनके एक सेवक ने एक मोमबत्तीदान तोड़ दिया है, तो वे सन्न रह गए।
उन्होंने वह मोमबत्तीदान काफी पैसे खर्च करके ईरान से मँगवाया था। इसलिए वे आग-बबूला हो उठे। गुस्से से उबलते हुए वे महल में पहुँचकर उस सेवक से बोले, “तुमसे ढंग से काम नहीं होता क्या!
जानते हो इन मोमबत्ती दानों पर मैंने कितना पैसा खर्च किया है। जो मोमबत्ती दान तुमने तोड़ा है, वह तो मैंने खासतौर पर ईरान से मँगवाया था। तुम्हें इसकी सजा दी जाएगी।”
दूसरे दिन राज्यसभा में अकबर ने सेवक को मृत्युदंड दिए जाने का आदेश दे दिया। आदेश के मुताबिक सेवक को कारागार में डाल दिया गया। दूसरे दिन उसे फाँसी पर लटका दिया जाना था।
जब बीरबल को इस घटना की सूचना मिली, तो वे बड़े चिंतित हुए। वे सभी लोगों के हितैषी थे और जानते थे कि किसी भी व्यक्ति से ऐसी भूल हो सकती है।
ऊपर से यह भूल इतनी बड़ी भी नहीं थी कि करने वाले को मौत की सजा दे दी जाए। वे उस सेवक से मिलने सीधे कारागार पहुंचे। उन्होंने सेवक को मृत्युदंड से बचाने का एक उपाय सोच रखा था, जिसे उन्होंने उस सेवक को भली-भाँति समझा दिया।
अब उस सेवक को अपना जीवन बचने की उम्मीद बँध गई। उसे आशा थी कि बीरबल की योजना के अनुसार कार्य करके वह मृत्युदंड से बच जाएगा।
दूसरे दिन जब सेवक को फाँसी पर लटकाने का समय आया, तो परम्परा के अनुसार उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई। सेवक ने बादशाह से मिलने की इच्छा व्यक्त की। अकबर से स्वीकृति प्राप्त करके सैनिक उसे उनके पास ले आए।
बादशाह उस समय अपने महल में बैठे कीमती मोमबत्तीदानों को निहार रहे थे सैनिकों ने सेवक को अकबर के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। सेवक ने पहले तो बादशाह को अपना सिर झुकाकर सलाम किया।
फिर देखते ही देखते बड़े साहस के साथ उसने वहाँ रखे कई कीमती मोमबत्तीदान गिराकर तोड़ डाले। यह काम उसने इतनी शीघ्रता से किया कि कोई उसे रोक न सका।
सेवक का दुस्साहस देखकर अकबर का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया। वे गरजते हुए बोले, “अरे! यह तो पागल हो गया है। सैनिको, पकड़ लो इसे।
इसकी इतनी जुर्रत कि ये मेरे बेशकीमती मोमवत्तीदानों को तोड़ो, और वह भी मेरे ही सामने!!!” सेवक ने हाथ जोड़कर निवेदन किया, “जहांपनाह, मैंने तो केवल उन बेकसूर लोगों की जान बचाई है,
जिनका जीवन इन मोमबत्तीदानों की वजह से मुसीबत में पड़ सकता था। मैं तो मौत की सजा पा ही चुका हूँ, चाहे वह एक मोमबत्तीदान तोड़ने के कारण मिली हो, या सभी मोमबत्तीदानों को तोड़ने के कारण।
मैं चाहता था कि अगर कभी गलती से किसी दूसरे नौकर के हाथों कोई मोमबत्तीदान टूट जाए तो वह भी अपनी जिंदगी से हाथ न धो बैठे। ये मोमबत्तीदान किसी और की मौत की वजह न बनें, इसलिए मैंने इनको तोड़ डाला।
मुझे उम्मीद है कि आप मेरे इस काम की वजह समझेंगे और मुझे माफ कर देंगे।” अकबर ऐसा उत्तर सुनकर आश्चर्यचकित रह गए। उन्हें अपना दोष समझ में आ गया।
उन्होंने कहा, “ठीक है, तुम्हें माफ किया जाता है। परन्तु जहाँ तक मैं समझता हूँ, तुम इतने होशियार तो हो नहीं कि खुद ऐसी तरकीब सोचकर उस पर अमल कर सको।
सच बताओ, तुम्हें ऐसा करने के लिए किसने कहा था?” “बीरबल महाराज ने, जहांपनाह।” सेवक ने उत्तर दिया। इत्तेफाक से बीरबल भी उसी समय वहाँ आ पहुँचे।
अकबर ने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा,”बीरबल, आज तुमने मुझे एक गुनाह करने से बचा लिया। अगर आज यह नौकर मौत की सजा पा गया होता तो मैं खुद को जिंदगी भर माफ नहीं कर पाता। बेगुनाह के कत्ल से बढ़कर कोई गुनाह नहीं होता। मुझे तुम पर नाज़ है।”
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बादशाह कौन? A story in Hindi with Moral for Students
बादशाह अकबर की राजसभा के नौ रत्नों में से एक बीरबल अपनी योग्यता के कारण देश-विदेश में प्रसिद्ध हो चुके थे। उनकी बुद्धिमत्ता की कहानियाँ चारों ओर दूर-दूर तक फैल गई थीं।
उनके बारे में प्रसिद्ध था कि उन्हें बुद्धि में कोई हरा नहीं सकता। बीरबल के चर्चे ईरान के बादशाह के कानों में भी जा पहुँचे थे। वह बीरबल से मिलकर उनकी बुद्धि परखने का बड़ा इच्छुक हो उठा।
इसी मकसद से उसने अपना एक दत अकबर की राजसभा में बीरबल के लिए ईरान-आगमन के निमंत्रण पत्र के साथ भेजा। सप्ताह भर की यात्रा के पश्चात राजदूत ने आगरा पहुंचकर वह निमंत्रण पत्र बादशाह अकबर को सौंपा।
सभासदों के साथ विचार-विमर्श करके बादशाह ने बीरबल को ईरान प्रस्थान करने का आदेश दिया। बीरबल प्रसन्नतापूर्वक राजदूत के साथ यात्रा पर निकल पड़े। एक लम्बी यात्रा के बाद वे ईरान पहुँचे।
राजदूत ने बीरबल को अतिथिशाला में बड़े सम्मान के साथ ठहराया। बीरबल ने भोजन आदि के बाद थोड़ा आराम किया। शाम को वह दूत बीरबल को राज्यसभा में ले गया। जैसे ही बीरबल ने दरबार में प्रवेश किया,
उन्हें एक बड़ा ही विचित्र दृश्य दिखा। सामने चार एक जैसे सिंहासनों पर एक जैसी रूप-आकृति वाले चार व्यक्ति बैठे हुए थे। देखने में उनमें कोई अंतर नहीं लग रहा था।
उन चारों में से कोई एक बादशाह था। किंतु वह कौन था, यह बीरबल का पता लगाना था। परंतु यहाँ तो बीरबल भी उन्हें देखकर चकरा गए थे। वे इससे पहले ईरान के बादशाह से मिले भी नहीं थे।
वे समझ नहीं पा रहे थे कि किस प्रकार बादशाह को पहचानकर उसका अभिवादन करें। अचानक एक विचार उनके मन में कौंधा। थोड़ी देर तक वे चुपचाप खड़े-खड़े उन चारों की गतिविधियों का निरीक्षण करते रहे।
फिर वे उन चारों में से एक के पास गए और बोले, “बादशाह सलामत, मैं आपकी सेवा में अपना सलाम पेश करता हूँ और खुदा से आपकी सलामती की दुआ करता हूँ।
मैं हिंदुस्तान से आपसे मुलाकात के लिए ही यहाँ आया हूँ। मैं अपने शहंशाह अकबरे आजम की तरफ से आपके लिए नेकनीयती और दोस्ती का पैगाम लाया हूँ।”
वह व्यक्ति जिससे बीरबल ने यह बात कही, अपने सिंहासन से उठा और बोला, “बीरबल, हम ईरान में तुम्हारा स्वागत करते हैं और तुम्हारी अक्लमंदी की दाद देते हैं।
यह हमारी खुशनसीबी है कि हमें तुम जैसे होशियार और काबिल शख्स से मिलने का मौका मिला। तुम्हारी हमने बहुत तारीफ सुनी थी। पहले हमें भी यकीन नहीं आता था कि कोई शख्स इतना बुद्धिमान भी हो सकता है, लेकिन आज हमने खुद अपनी आँखों से देख लिया।
इस बात में कोई शक नहीं कि तुम वाकई बहुत अक्लमंद हो। मगर यह तो बताओ कि आखिर तुम्हें पता कैसे चला कि हम ही असली बादशाह हैं। हमें यह सवाल परेशान कर रहा है।”
बीरबल मुस्कुराते हुए बोले, “तारीफ के लिए शुक्रिया, बादशाह सलामत! दरअसल मैं आप चारों को बड़ी बारीकी से देख रहा था। आपके अलावा बाकी तीन लोग बड़े घबराए हुए थे।
ऐसा लग रहा था मानो वे सोच रहे हो कि क्या किया जाए और क्या नहीं। वे बार-बार आपके चेहरे की तरफ ही देख रहे थे। वे खुद फैसला लेने में अयोग्य से दिखते हुए केवल आपका रवैया देख रहे थे, ताकि वे भी वैसा ही कर सकें। लेकिन आप तो असल बादशाह हैं।
इसलिए आपको किसी के भी चेहरे की तरफ देखने की जरूरत ही नहीं थी।
आपकी नजर सीध मेरे ऊपर जमी थी।” ईरान का बादशाह बीरबल के बुद्धिचातुर्य से बहुत प्रभावित हुआ। वह इतना अधिक प्रसन्न हुआ कि सिंहासन से उठकर उसने बीरबल को गले लगा लिया और बोला,
“बीरबल, तुम वाकई बादशाह अकबर के दरबार के बेहतरीन गाने हो! तुम्हारी अक्लमंदी काबिले तारीफ है।” बीरबल वहाँ लगभग एक सप्ताह तक सम्मानित अतिथि के रूप में रहे।
वहाँ उन्हें ईरान की विभिन्न विशेषताओं को देखने का भी अवसर प्राप्त हुआ। भारत लौटते समय ईरान के बादशाह ने बीरबल को बहुत सारे उपहारों के साथ विदा किया।
आगरा लौटकर जब उन्होंने बादशाह अकबर को अपनी ईरान यात्रा के बारे में बताया तो वे बड़े खुश हुए। वे बीरबल की तारीफ करते हुए बोले,
“हमें पूरी उम्मीद थी कि तुम ईरान में भी अपनी काबिलियत का सिक्का जमा दोगे। शाबाश!” फिर बादशाह अकबर ने भी बीरबल को इनामों से नवाजा।
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एक दिन बादशाह अकबर किसी बात पर बीरबल से खफा हो गए और उन्होंने बीरबल को अपने राज्य से बेदखल कर दिया। बीरबल बडे आत्मसम्मानी व्यक्ति थे।
इसलिए उन्होंने भी बादशाह से अपनी सजा माफ कराने की कोई कोशिश नहीं की। वे बोले, “बादशाह सलामत, मैंने हमेशा अपनी पूरी ताकत से हुकूमत की खिदमत की है।
आपके हुक्म की तामील करते हुए मैं यह राज्य छोड़कर जा रहा हूँ, लेकिन इस राज्य के लिए मेरी वफादारी हमेशा कायम रहेगी।” इतना कहकर बीरबल ने अपने परिवार के साथ वह राज्य छोड़ दिया।
कुछ ही दिनों में बादशाह को अपनी गलती महसूस हो गई। बीरबल के बिना उन्हें हुकूमत का काम चलाने में बड़ी दिक्कत होने लगी थी। उन्होंने अपने सिपाहियों को आसपास के सभी राज्यों में बीरबल को ढूंढने के लिए भेजा, लेकिन इस खोज का कोई नतीजा नहीं निकला।
बीरबल कहीं नहीं मिले। अब बादशाह ने बीरबल का पता लगाने के लिए एक योजना बनाई। उन्होंने घोषणा की कि जो व्यक्ति उनके दरबार में आधी रोशनी और आधी छाया में आएगा, उसे वे इनाम में हजार अशर्फियाँ देंगे।
बादशाह जानते थे कि इस पहेली को सुलझाने में सिर्फ बीरबल ही कामयाब हो सकते हैं। उधर बीरबल एक सुदूर राज्य में एक ब्राह्मण परिवार के बीच रह रहे थे।
जब उन्होंने यह घोषणा सुनी, तो वे उस पहेली को सुलझाने से खुद को रोक नहीं सके। वे उस ब्राह्मण से बोले, “अगर दौलत कमाने का मन हो तो मैं तुम्हें एक उपाय बताऊँ?” “अरे भैया!” ब्राह्मण बोला, “पैसा कमाना किसे बुरा लगता है?”
“बादशाह अकबर की पहेली सुनी है?” बीरबल ने पूछा। “सुनी तो है। यह भी भला क्या बात हुई? आधी रोशनी और आधी छाया में भला कोई चल सकता है?” ब्राह्मण बोला।
“चल सकता है, ब्राह्मण देवता! बस, तुम अपने सिर पर चारपाई रखकर बादशाह के दरबार में पहुँच जाओ। इस तरह तुम आधी रोशनी और आधी छाया में होगे।”
बीरबल बोले। ब्राह्मण ने बिल्कुल वैसा ही किया, जैसा बीरबल ने उसे समझाया था। अगले दिन वह ब्राह्मण अपने सिर पर एक चारपाई रखकर बादशाह अकबर के दरबार में जा पहुँचा और उनसे बोला, “हिंदुस्तान के शहंशाह, मैंने आधी रोशनी और आधी छाया में आकर आपकी शर्त पूरी कर दी है। अब मुझे इनाम मिलना चाहिए।”
उसकी बात सुनकर बादशाह मुस्कुराते हुए बोले, “मुझे सच-सच बताओ। यह पहेली तुमने खुद सुलझाई है या किसी और ने तुम्हें इसका हल बताया है?”
ब्राह्मण ने बादशाह को सब कुछ साफ-साफ बता दिया। बादशाह समझ गए कि ब्राह्मण का वह मेहमान बीरबल ही हो सकता है। उन्होंने अपने सेवकों को बीरबल को आदर सहित ले आने के लिए भेज दिया। बीरबल एक बार फिर दरबार में लौट आए और सरकारी कामकाज पहले जैसा चलने लगा।
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