Hindi Interesting Stories:- Here I’m sharing the top Hindi Interesting Stories For Kids which is very valuable and teaches your kids life lessons, which help your children to understand the people & world that’s why I’m sharing with you.
यहां मैं बच्चों के लिए हिंदी में नैतिक के लिए शीर्ष कहानी साझा कर रहा हूं जो बहुत मूल्यवान हैं और अपने बच्चों को जीवन के सबक सिखाते हैं, जो आपके बच्चों को लोगों और दुनिया को समझने में मदद करते हैं इसलिए मैं आपके साथ हिंदी में नैतिक के लिए कहानी साझा कर रहा हूं।
Top Hindi Interesting Stories For Kids
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एक स्थान पर हरिदत्त नाम-का एक ब्राह्मण रहता था। एक बार उसने अपने खेत में एक सर्प को फन उठाए हुए देखा। उसने उस सर्प के बिल के आगे एक पात्र में दूध भरकर रख दिया और उसने प्रार्थना की—’देव !
मुझे आपकी उपस्थिति का पता नहीं था, इसलिए आपकी पूजा न कर सका। अब से मैं नित्य प्रति आपकी पूजा करूंगा। दूसरे दिन प्रातःकाल जब वह खेत पर आया तो जिस मिट्टी के पात्र में वह दूध रखकर गया था,
उस पात्र में उसने एक स्वर्णमुद्रा रखी हुई देखी। तब से वह नित्यप्रति सर्प को दूध पिलाने लगा। सुबह उसे दूध के उस पात्र में एक स्वर्णमुद्रा रखी हुई मिल जाती। एक दिन किसी कार्यवश ब्राह्मण को कहीं बाहर जाना पड़ा।
सर्प के लिए दूध रखने का काम वह अपने पुत्र को सौंप गया। उसका पुत्र शाम को जाकर बिल के पास उसी तरह दूध रख आया। दूसरे दिन सुबह जब वहां गया तो उसने पात्र में रखी हुई स्वर्णमुद्रा देखी।
उसने सोचा कि हो न हो, इस सर्प की बांबी में स्वर्णमुद्राएं भरी हैं, क्यों न इसे मारकर सारे धन को ले लिया जाए ? यही सोचकर उस ब्राह्मण पुत्र ने सर्प को मारना चाहा। लेकिन सर्प बच गया और उसने उस लड़के को काट खाया।
लड़का वहीं मर गया। दूसरे दिन जब हरिदत्त वापस आया तो उसके स्वजनों ने उसे सारा वृत्तांत सुनाया। यह सुनकर हरिदत्त को बहुत दुख हुआ। उसने कहा कि यह अच्छा नहीं हुआ। मेरे पुत्र को ऐसा नहीं करना चाहिए था।
शरणागत को कभी मारना नहीं चाहिए। शरणागत की रक्षा न करने वाला व्यक्ति पाप का दोषी बनता है। उसके सभी काम वैसे ही बिगड़ जाते हैं जैसे जयपुर में रहने वाले हंसों का काम बिगड़ गया था।
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किसी बिल में एक महा भयंकर सर्प निवास करता था। उसका नाम था, अतिदर्पे। नाम के अनुरूप ही वह सर्प महाअभिमानी था। छोटे-छोटे जीवों की तो गिनती ही क्या, वह खरगोशों तक को निगल जाया करता था।
एक दिन की बात कि वह नित्य के मार्ग से बाहर न निकलकर अन्य संकरे मार्ग से निकलने लगा। पत्थरों की नोकें चुभने के कारण उसका शरीर जगह-जगह से जख्मी हो गया और उन भागों से रक्त टपकने लगा।
उसके बिल के समीप रहने वाली चीटियों को जब उसके रक्त की गंध मिली तो वे उसके शरीर पर चढ़ गई और घावों में घुसकर उसका रक्त चूसने लगी। सर्प ने अनेक चींटियों को मार डाला, किंतु चींटियों की संख्या बढ़ती ही गई।
सर्प को उन्होंने अशक्त कर डाला। वह अधिक दिनों तक जीवित न रह सका और शीघ्र ही उसका प्राणान्त हो गया। यह कथा सुनाकर स्थिरजीवी कहने लगा-‘इसलिए मैं कहता हूं कि जनसमूह से विरोध मोल लेना नहीं चाहिए।
बस अब हमको यही करना चाहिए कि हम छल नीति को स्वीकार करें। मैं स्वयं गुप्तचर का काम करूंगा। तुम लोग मुझसे लड़कर,
मुझे लहूलुहान करने के बाद इसी वृक्ष के नीचे फेंककर स्वयं सपरिवार ऋष्यमूक पर्वत पर चले जाओ। मैं तुम्हारे शत्रु उल्लुओं का विश्वासपात्र बनकर उन्हें वृक्ष पर बने अपने दुर्ग में बसा लूंगा, और अवसर पाकर उन सबका नाश कर दूंगा।
तब फिर तुम सब यहां आ जाना।’ यह कहकर स्थिरजीवी ने मेघवर्ण के साथ स्वयं ही बनावटी झगड़ा आरंभ कर दिया। जब अन्य कौओं ने यह देखा तो वे स्थिर बीवी को मारने के लिए दौड़े।
मेघवर्ण ने उन्हें रोकते हुए कहा-‘तुम सब अलग हट जाओ। मैं स्वयं इस बूढ़े को सजा देता हूं।’ मेघवर्ण ने नकली रक्त का प्रबंध कर लिया था। उसने उस रक्त को स्थिरजीवी के शरीर पर लेप दिया।
इस प्रकार उसको आहत-सा करके मेघवर्ण अपने परिवार तथा प्रजा को लेकर ऋष्यमूक पर्वत की ओर उड़ गया। उल्लू की मित्र कृकालिका ने भी जब यह सब देखा तो उसने उल्लूराज के पास पहुंचकर सारी बातें बता दीं।
उल्लू राज ने भी रात आने पर दल-बल समेत उस वृक्ष पर जाकर अधिकार कर लिया। उसने सोचा कि भागते हुए शत्रु को नष्ट करना अधिक सहज होता है, इसलिए उसी समय उसने कौओं पर आक्रमण करने का निश्चय कर लिया।
अभी वह अपनी सेना को कौओं पर आक्रमण करने का आदेश देने की सोच ही रहा था कि नीचे पड़े स्थिरजीवी ने कराहना आरंभ कर दिया। उसे सुनकर सबका ध्यान उसकी ओर चला गया।
उल्लू नीचे पड़े स्थिरजीवी को मारने के लिए नीचे झपटे। तभी स्थिरजीवी ने कहा-‘इससे पूर्व कि तुम मुझे मार डालो, मेरी एक बात सुन लो। मैं मेघवर्ण का सबसे पुराना मंत्री हूं। मेघवर्ण ने ही मुझे घायल करके इस तरह फेंक दिया है।
मैं तुम्हारे राजा से बहुत-सी बातें कहना चाहता हूं। उनसे मेरी भेंट करवा दो।’ उल्लुओं ने यह बात उल्लू राज को बताई तो वह स्वयं वहां पहुंचा। स्थिरजीवी की ऐसी दशा देखकर उसने आश्चर्य से पूछा तुम्हारी यह दशा किसने कर दी !
स्थिरजीवी बोला-‘देव ! बात यह हुई कि दुए मेघवर्ण आपके ऊपर सेना सहित आक्रमण करना चाहता था। मैंने उसे रोकते हुए कहा कि शत्रु बलशाली हैं, उनसे युद्ध न करके संधि कर लो।
मेरी बात सुनकर मेघवर्ण ने समझा कि मैं आपका हितचिंतक हूं। इसलिए उसने मेरी यह हालत कर दी। अब आप ही मेरे स्वामी हैं।
जैसे ही मेरे घाव भर जाएंगे, मैं स्वयं आपके साथ जाकर मेघवर्ण को खोज निकालूंगा और उसका सर्वनाश करने में आपका सहायक बनूंगा।
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