Best Gautam buddha quotes in Hindi
1. मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से, लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है।
2. पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती, लेकिन मानव के सद्गुण की महक सब ओर फैल जाती है।
3. हजार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर विजय पाता है, वही सच्चा विजयी है।
4. सात सागरों में जल की अपेक्षा मानव के नेत्रों से कहीं अधिक आँसू बह चुके।
5. अभिलाषा सब दुःखों का मूल है।
6. जो नसीहत नहीं सुनता उसे लानत-मलामत सुनने का शौक होना चाहिए।
7. घृणा घृणा से कभी कम नहीं होती, प्रेम से ही होती है।
8. पाप का संचय ही दुःखों का मूल है।
9. जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी है।
10. हम जो कुछ भी हैं वह हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है। यदि कोई व्यक्ति बुरी सोच के साथ बोलता या काम करता है, तो उसे कष्ट ही मिलता है। यदि कोई व्यक्ति शुद्ध विचारों के साथ बोलता या काम करता है, तो उसकी परछाई की तरह खुशी उसका साथ कभी नहीं छोड़ती।
Buddha Quotes in Hindi with Images
11. हजारों खोखले शब्दों से अच्छा वह एक शब्द है जो शांति लाए।
12. सभी बुरे कार्य मन के कारण उत्पन्न होते हैं, अगर मन परिवर्तित हो जाए तो क्या अनैतिक कार्य रह सकते हैं?
13. एक जग बूंद-बूंद कर के भरता है।
14. अतीत पर ध्यान मत दो, भविष्य के बारे में मत सोचो, अपने मन को वर्तमान क्षण पर केंद्रित करो।
15. स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफादारी सबसे बड़ा संबंध है।
16. जैसे मोमबत्ती बिना आग के नहीं जल सकती, मनुष्य भी आध्यात्मिक जीवन के बिना नहीं जी सकता।
17. तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकती-सूरज, चंद्रमा और सत्य।
18. सत्पुरुष सर्वत्र ( पांच स्कंधों में) छंदराग छोड़ देते हैं, संत जन कामभोगों के लिए बात नहीं चलाते, चाहे सुख मिले या दुःख, पंडित (जन) (अपने मन का) उतार-चढ़ाव प्रदर्शित नहीं करते।
19. तुम अपने क्रोध के लिए दंड नहीं पाओगे, तुम अपने क्रोध द्वारा दंड पाओगे।
20. किसी जंगली जानवर की अपेक्षा एक कपटी और दुष्ट मित्र से ज्यादा डरना चाहिए, जानवर तो बस आपके शरीर को नुकसान पहुँचा सकता है, पर एक बुरा मित्र आपकी बुद्धि को नुकसान पहुंचा सकता है।
Lord Buddha Quotes in Hindi
21. आपके पास जो कुछ भी है, उसे बढ़ा-चढ़ाकर मत बताइए, और न ही दूसरों से ईर्ष्या कीजिए, जो दूसरों से ईर्ष्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती।
22. वह जो पचास लोगों से प्रेम करता है उसके पचास संकट हैं, वह जो किसी से प्रेम नहीं करता उसके एक भी संकट नहीं है।
23. क्रोध को पाले रखना गरम कोयले को किसी और पर फेंकने की नीयत से पकड़े रहने के सामान है; इसमें आप ही जलते हैं।
24. चाहे आप जितने पवित्र शब्द पढ़ लें या बोल लें, वह आपका क्या भला करेंगे जब तक आप उन्हें उपयोग में नहीं लाते?
25. मैं कभी नहीं देखता कि क्या किया जा चुका है; मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है।
26. बिना सेहत के जीवन जीवन नहीं है; बस पीड़ा की एक स्थिति है-मौत की छवि है।
27. हम जो सोचते हैं, वह बन जाते हैं।
28. शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है, शक लोगों को अलग करता है। यह एक ऐसा जहर है, जो मित्रता खतम करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है।
29. सत्य के मार्ग पर चलते हुए कोई दो ही गलतियाँ कर सकता है; पूरा रास्ता न तय करना, और इसकी शुरुआत ही न करना।
30. किसी विवाद में हम जैसे ही क्रोधित होते हैं हम सच का मार्ग छोड़ देते हैं, और अपने लिए प्रयास करने लगते हैं।
Bhagwan buddha quotes in Hindi
31. चार आर्य सत्य हैं : पहला यह कि दुःख है। दूसरा यह कि दुःख का कारण है। तीसरा यह कि दुःख का निदान है। चौथा यह कि वह मार्ग है जिससे दुःख का निदान होता है।
32. योग की अति अर्थात् तपस्या की अति से भी बचना जरूरी है। भोग की अति से चेतना के चीथड़े होकर विवेक लुप्त और संस्कार सुप्त हो जाते हैं। परिणामस्वरूप व्यक्ति के दिल-दिमाग की दहलीज पर विनाश डेरा डाल देता है। ठीक वैसे ही तपस्या की अति से देह दुर्बल और मनोबल कमजोर हो जाता है।
33. मैत्री के मोगरों की महक से ही संसार में सद्भाव का सौरभ फैल सकता है।
34. बैर से बैर कभी नहीं मिटता। अबैर से मैत्री से ही बैर मिटता है। मित्रता ही सनातन नियम है।
35. मनुष्य स्वयं ही अपना स्वामी है। भला दूसरा कोई उसका स्वामी कैसे हो सकता है? मनुष्य अपने आप ही अच्छी तरह से अपना दमन करके दुर्लभ स्वामित्व को, निर्वाण को प्राप्त कर सकता है।
36. मनुष्य स्वयं ही अपना स्वामी है। स्वयं ही वह अपनी गति है। इसलिए तुम अपने आपको संयम में रखो, जैसे घुड़सवार अपने सधे हुए घोड़े को अपने वश में रखता है।
37. सब अस्तित्व क्षणिक मात्र होते हैं। अतः प्राणियों में तथा इनसानों में अजन्म, अचल, अपरिवर्तनशील, अमर आत्मा नहीं होती। हर अस्तित्व में कोई स्वाभाविक शक्ति होती है, जो अपने जैसे ही एक अस्तित्व को जन्म देती है। इस तरह कोई भी अस्तित्व क्षणिक होने के बावजूद अपने परिणाम के रूप में बना रहता है। पूरी तरह से स्थायी और पूरी तरह से उच्छेद के बीच का यह मध्यम मार्ग है । हर अस्तित्व कारण के रूप में क्षण भर टिकने के बाद परिणाम के रूप में बना रहता है। कारण-परिणाम की यह श्रृंखला अनादि है और अनंत भी है।
38. ब्राह्मण न तो जटा से होता है, न गोत्र से और न जन्म से। जिसमें सत्य है, धर्म है और जो पवित्र है, वही ब्राह्मण है।
39. अरे मूर्ख! जटाओं से क्या?मृगचर्म पहनने से क्या? भीतर तो तेरा हृदय अंधकारमय है, काला है, ऊपर से क्या धोता है?
40. जो अकिंचन है, किसी तरह का परिग्रह नहीं रखता, जो त्यागी है, उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूँ।
Mahatma Buddha Quotes in Hindi
41. कमल के पत्ते पर जिस तरह पानी अलिप्त रहता है या आरे की नोक पर सरसों का दाना, उसी तरह जो आदमी भोगों से अलिप्त रहता है, उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूँ।
42. चर या अचर, किसी प्राणी को जो दंड नहीं देता, न किसी को मारता है, न किसी को मारने की प्रेरणा देता है उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूँ।
43. ब्राह्मण मैं उसे कहता हूँ, जो अपरिग्रही है, जिसने समस्त बंधन काटकर फेंक दिए हैं, जो भय-विमुक्त हो गया है और संग तथा आसक्ति से विरत है।
44. जो बिना चित्त बिगाड़े, हनन और बंधन को सहन करता है, क्षमा-बल ही जिसका सेनानी है, मैं उसी को ब्राह्मण कहता हूँ।
45. जो अक्रोधी है, व्रती है, शीलवान है, बहुश्रुत है, संयमी और अंतिम शरीरवाला है, उसे ही मैं ब्राह्मण कहता हूँ।
46. जन्म दुःख है, जरा दुःख है, व्याधि दुःख है, मृत्यु दुःख है, अप्रिय का मिलना दुःख है, प्रिय का बिछुड़ना दुःख है, इच्छित वस्तु का न मिलना दुःख है। यह दुःख नामक आर्य सत्य परिज्ञेय है। संक्षेप में रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान, यह पंचोपादान स्कंध (समुदाय) ही दुःख हैं।
47. तृष्णा पुनुर्मवादि दुःख का मूल कारण है। यह तृष्णा राग के साथ उत्पन्न हुई है। सांसारिक उपभोगों की तृष्णा, स्वर्गलोक में जाने की तृष्णा और आत्महत्या करके संसार से लुप्त हो जाने की तृष्णा, इन तीन तृष्णाओं से मनुष्य अनेक तरह का पापाचरण करता है और दुःख भोगता है। यह दुःख समुदाय का आर्य सत्य त्याज्य है।
48. तृष्णा का निरोध करने से निर्वाण की प्राप्ति होती है, देहदंड या कामोपभोग से मोक्षलाभ होने का नहीं। यह दुःख निरोध नाम का आर्य सत्य साक्षात्करणीय कर्तव्य है।
49. नरोधगामिनी प्रतिपद् नामक आर्य सत्य भावना करने योग्य है। इसी आर्य सत्य को अष्टांगिक मार्ग कहते हैं। वे अष्टांग ये हैं :- 1. सम्यक् दृष्टि, 2. सम्यक् संकल्प, 3. सम्यक् वचन, 4. सम्यक् कर्मांत, 5. सम्यक् आजीव, 6. सम्यक् व्यायाम, 7. सम्यक् स्मृति और 8. सम्यक् समाधि। दुःख का निरोध इसी अष्टांगिक मार्ग पर चलने से होता है ।
50. चित्त से ही जगत् की सत्ता है और जगत् की सत्ता चित्त है।
Good morning Buddha Quotes in Hindi
51. प्रमाद में मत फँसो। भोग-विलास में मत फँसो । कामदेव के चक्कर में मत फैसो। प्रमाद से दूर रहकर ध्यान में लगनेवाला व्यक्ति महासुख प्राप्त करता है।
52. प्रमाद न करने से, जागरूक रहने से अमृत का पद मिलता है, निर्वाण मिलता है। प्रमाद करने से आदमी बे- मौत मरता है। अप्रमादी नहीं मरते। प्रमादी तो जीते हुए भी मरे जैसे हैं।
53. कंजूस आदमी देवलोक में नहीं जाते। मूर्ख लोग दान की प्रशंसा नहीं करते। पंडित लोग दान का अनुमोदन करते हैं। दान से ही मनुष्य लोक-परलोक में सुखी होता है।
54. तृष्णा की नदियाँ मनुष्य को बहुत प्यारी और मनोहर लगती हैं। जो इनमें नहाकर सुख खोजते हैं, उन्हें बार -बार जन्म, मरण और बुढ़ापे के चक्कर में पड़ना पड़ता है।
55. लोहे का बंधन हो, लकड़ी का बंधन हो, रस्सी का बंधन हो, इसे बुद्धिमान लोग बंधन नहीं मानते। इनसे कड़ा बंधन तो सोने का, चाँदी का, मणि का, कुंडल का, पुत्र का, स्त्री का है।
56. गृहस्थ को चाहिए कि वह किसी प्राणी की हिंसा न करे, चोरी न करे, असत्य न बोले, शराब आदि मादक पदार्थों का सेवन न करे, व्यभिचार से बचे और रात्रि में असमय भोजन न करे।
57. गृहस्थ के कर्तव्य इस प्रकार हैं जिस आर्य श्रावक (गृहस्थ) को छह दिशाओं की पूजा करनी हो, वह चार कर्म-क्लेशों से मुक्त हो जाए। जिन चार कारणों के वश होकर मूढ़ मनुष्य पाप कर्म करने में प्रवृत्त होता है, उनमें से उसे किसी भी कारण के वश में नहीं होना चाहिए और संपत्ति-नाश के उसे छहों दरवाजे बंद कर देने चाहिए।
58. चित्त के मलीन होने से दुर्गति अनिवार्य है। चित्त के मल ये हैं, जिन्हें 'उपक्लेश' भी कहा जाता है : 1. विषमलोभ, 2. द्रोह, 3. क्रोध, 4. पाखंड, 5. अमर्ष, 6. निष्ठुरता, 7. ईर्ष्या, 8. मात्सर्य, 9. ठगना, 10. शठता 11. जड़ता, 12. हिंसा, 13. मान, 14. अतिमान, 15. मद और 16. प्रसाद।
59. मन ही सारी प्रवृत्तियों का अगुवा है। प्रवृत्तियों का आरंभ मन से ही होता है। वे मनोमय हैं। जब कोई आदमी दूषित मन से बोलता है या वैसा कोई काम करता है तो दुःख उसका पीछा उसी तरह करता है, जिस तरह बैलगाड़ी के पहिए बैल के पैरों का पीछा करते हैं।
60. मन ही सारी प्रवृत्तियों का अगुवा है। प्रवृत्तियाँ मन से ही आरंभ होती हैं। यदि मनुष्य शुद्ध मन से बोलता है या कोई काम करता है, तो सुख उसी तरह उसका पीछा करता है, जिस तरह मनुष्य के पीछे उसकी छाया।
Buddha Quotes in the Hindi language
61. सद्भाव से ही समाज निर्माण संभव है। जिससे एक व्यक्ति से दूसरे को अधिकाधिक हस्तांतरित होने पर श्रेष्ठ समाज की कल्पना को साकार किया जा सकता है।
62. जो आदमी शांत पद चाहता है, जो कल्याण करने में कुशल है, उसे चाहिए कि वह योग्य और परम सरल बने। उसकी बातें सुंदर, मीठी और नम्रता से भरी हों। उसे संतोषी होना चाहिए। उसका पोषण सहज होना चाहिए। कामों में उसे ज्यादा फँसा नहीं होना चाहिए। उसका जीवन सादा हो। उसकी इंद्रियाँ शांत हों। वह चतुर हो। वह ढीठ न हो। किसी कुल में उसकी आसक्ति नहीं होनी चाहिए ।
63. वह ऐसा कोई छोटे से छोटा काम भी न करे, जिसके लिए दूसरे जानकार लोग उसे दोष दें। उसके मन में ऐसी भावना होनी चाहिए कि सब प्राणी सुखी हों, सबका कल्याण हो, सभी अच्छी तरह रहें।
64. कोई किसी को न ठगे। कोई किसी का अपमान न करे। वैर या विरोध से एक-दूसरे के दुःख की इच्छा न करें।
65. माता जैसे अपनी जान की परवाह न कर अपने इकलौते बेटे की रक्षा करती है, उसी तरह मनुष्य सभी प्राणियों के प्रति असीम प्रेमभाव बढ़ाए।
66. खड़ा हो चाहे चलता हो, बैठा हो चाहे लेटा हो, जब तक मनुष्य जागता है, तब तक उसे ऐसी ही स्मृति बनाए रखनी चाहिए। इसी का नाम ब्रह्म-विहार है।
67. ऐसा मनुष्य किसी मिथ्या दृष्टि में नहीं पड़ता । शीलवान व शुद्ध दर्शनवाला होकर वह काम, तृष्णा का नाश कर डालता है। उसका पुनर्जन्म नहीं होता।
68. जैसे कच्ची छत में जल भरता है, वैसे ही अज्ञानी के मन में कामनाएँ जमा होती हैं।
69. सारे संस्कार अनित्य हैं अर्थात् जो कुछ उत्पन्न होता है वह नष्ट भी होता है इस सच्चाई को जब कोई विपश्यना प्रज्ञा से देख लेता है तो उसको दुःखों का निर्वेद प्राप्त होता है अर्थात् दुःख क्षेत्र के प्रति भोक्ता भाव टूट जाता है।
70. मन सभी धर्मों का अगुआ है, मन ही प्रधान है, सभी धर्म मनोमय हैं, जब कोई व्यक्ति अपने मन को मैला करके कोई वाणी बोलता है अथवा शरीर से कोई कर्म करता है तब सुख उसके पीछे हो लेता है, जैसे कभी न छोड़नेवाली छाया संग-संग चलने लगती है।
Motivational Buddha Quotes in Hindi
71. मुझे कोसा, मुझे मारा, मुझे हराया, मुझे लूटा-जो मन में ऐसी गाँठें नहीं बाँधते रहते हैं उनका बैर शांत हो जाता है।
72. अनाड़ी लोग नहीं जानते कि हम यहाँ इस संसार से जानेवाले हैं, जो इसे जान जाते हैं उनके झगड़े शांत हो जाते हैं।
73. अच्छी लगनेवाली चीजों को शुभ-शुभ देखते विहार करनेवाले इंद्रियों में असंयत, भोजन की मात्रा के अज्ञानकार, आलसी और उद्योगहीन को मार ऐसे सताती है जैसे दुर्बल को मारुत।
74. अशुभ को अशुभ जानकर साधना करनेवाले इंद्रियों में सुसंयत, भोजन की मात्रा के जानकार, श्रद्धावान और उद्योगरत को मार उसी प्रकार नहीं डिगा सकता जैसे कि वायु शैल पर्वत को।
75. जिसने कषायों का परित्याग कर कषाय वस्त्र धारण किए हुए हैं वह संयम और सत्य से परे है, वह कषाय वस्त्र धारण करने का अधिकारी नहीं है।
76. जिसने कषायों को परित्याग किया है वह शीलों में प्रतिष्ठित है, संयम और सत्य से युक्त है, वह कषाय वस्त्र धारण करने का अधिकारी है।
77. जो निसार को सार और सार को निसार समझते हैं, ऐसे गलत चिंतन में लगे हुए व्यक्तियों को सार प्राप्त नहीं होता।
78. सार को सार और निसार को निसार जानकर शुद्ध चिंतनवाले व्यक्ति सार को प्राप्त कर लेते हैं।
79. जैसे बुरी तरह छाए हुए घर में वर्षा का पानी घुस जाता है, वैसे ही अभावित चित में राग घुस जाता है।
80. जैसे अच्छी तरह छाए हुए घर में वर्षा का पानी नहीं घुस पाता है, वैसे ही भावित (शमथ और विपश्यना) चित में राग नहीं घुस पाता है।
Famous Buddha Quotes in Hindi
81. यहाँ (इस लोक में) शोक करनेवाला, पाप करनेवाला (व्यक्ति) दोनों जगह शोक करता है। वह अपने कर्मों की मलिनता देखकर शोकापन्न होता है, संतापित होता है।
82. जो यहाँ (इस लोक में) प्रसन्न होता है,वह मृत्यु के बाद भी प्रसन्न होता है, पुण्य करनेवाला (व्यक्ति) दोनों जगह प्रसन्न होता है। वह अपने कर्मों की शुद्धता देखकर मुदित होता है, प्रमुदित होता है।
83. जो यहाँ (इस लोक) में संतप्त होता है, प्राण छोड़कर (परलोक में) संतप्त होता है, पापकारी दोनों जगह संतप्त होता है, मैंने पाप किया है-इस (चिंतन) से संतप्त होता है (और) दुर्गति को प्राप्त होकर और भी (अधिक) संतप्त होता है।
84. जो यहाँ (इस लोक) में आनंदित होता है, प्राण छोड़कर (परलोक में) आनंदित होता है, पुण्यकारी दोनों जगह आनंदित होता है, मैंने पुण्य किया है-इस (चिंतन) से आनंदित होता है (और) सुगति को प्राप्त होकर और भी (अधिक) आनंदित होता है।
85. धर्मग्रंथों (त्रिपिटक) का कितना ही पाठ करें, लेकिन यदि प्रमाद के कारण मनुष्य उन धर्मग्रंथों के अनुसार आचरण नहीं करता तो दूसरों की गायों को गिननेवाले ग्वालों की तरह वह श्रृमणत्व का भागी नहीं होता।
86. धर्मग्रंथों (त्रिपिटक) का भले थोड़ा ही पाठ करें, लेकिन यदि वह (व्यक्ति) धर्म के अनुकूल आचरण करनेवाला होता है, तो राग, द्वेष और मोह को त्यागकर,समप्रज्ञानी बन, भली प्रकार विमुक्ति चितवाला होकर इहलोक अथवा परलोक में कुछ आसक्ति न करता हुआ श्रृमणत्व का भागी हो जाता है।
87. प्रमाद न करना अमृत (निर्वाण) का पद है और मृत्यु का प्रमाद न करनेवाले (कभी) मरते नहीं, जबकि मृत्यु प्रमादी (तो) मरे सामान होते हैं।
88. ज्ञानीजन अप्रमाद के बारे में इस प्रकार विशेष रूप से जानकर आर्यों की गोचर भूमि में रमण करते हुए अप्रमाद में प्रमुदित होते हैं।
89. सतत ध्यान करनेवाले, नित्य दृढ़ पराक्रम करनेवाले, धीर पुरुष उत्कृष्ट योगक्षेमवाले निर्वाण को प्राप्त (अर्थात्, इसका साक्षात्कार) कर लेते हैं।
90. उद्योगशील, स्मृतिमान, शुची (दोषरहित) कर्म करनेवाले, सोच-समझकर काम करनेवाले, संयमी, धर्म का जीवन जीनेवाले, अप्रमत्त (व्यक्ति) का यश खूब बढ़ता है।
Hindi mein Buddha Quotes
91. मेधावी (पुरुष) उद्योग, अप्रमाद, संयम तथा (इंद्रियों के) दमन द्वारा (अपने लिए ऐसा) द्वीप बना ले जिसे (चार प्रकार के क्लेशों की) बाढ़ आप्लावित न कर सके।
92. मूर्ख, दुर्बुधि जन प्रमाद में लगे रहते हैं, (जबकि) मेधावी श्रेष्ठ धन के समान अप्रमाद की रक्षा करता है।
93. प्रमाद मत करो और न ही कामभोगों में लिप्त होओ, क्योंकि अप्रमादी ध्यान करते हुए महान् (निर्वाण) सुख पा लेता है।
94. जब कोई समझदार व्यक्ति प्रमाद को अप्रमाद से परे धकेल देता है (अर्थात्, जीत लेता है) तब वह प्रज्ञारूपी प्रासाद पर चढ़ा हुआ शोकरहित हो जाता है, (ऐसा) शोकरहित धीर (मनुष्य) शोकप्रस्त (विमूढों) जनों को ऐसे ही (करुण भाव से) देखता है जैसे की पर्वत पर खड़ा हुआ (कोई व्यक्ति) धरती पर खड़े लोगों को देखे।
95. प्रमाद करनेवालो में अप्रमादी (क्षीणाश्रव) तथा (अज्ञान की नींद में) सोए लोगों में (प्रज्ञा में) अतिसचेत उत्तम प्रज्ञावाला (दूसरों को) पीछे छोड़कर (ऐसे आगे निकल जाता है) जैसे शीघ्रगामी अश्व दुर्बल अश्व को।
96. अप्रमाद के कारण इंद्र देवताओं में श्रेष्ठता को प्राप्त हुए पंडित जन अप्रमाद की प्रशंसा करते हैं, इसलिए प्रमाद की सदा निंदा होती है।
97. जो साधक अप्रमाद में रत रहता है या प्रमाद में भय देखता है, वह अपने छोटे-बड़े सभी कर्म-संस्कारों के बंधनों को आग की भाँति जलाते हुए चलता है।
98. जो साधक अप्रमाद में रत रहता है या प्रमाद में भय देखता है, उसका पतन नहीं हो सकता, वह तो निर्वाण के समीप पहुँचा हुआ होता है।
99. चंचल, चपल, कठिनाइयों से संरक्षण और कठिनाई से ही निवारण योग्य चित्त को मेधावी पुरुष वैसे ही सीधा करता है जैसे बाण बनानेवाला बाण को।
100. जैसे जल से निकलकर धरती पर फेंकी गई मछली तड़पती है, वैसे ही मार के फंदे से निकलने के लिए ये चित्त तड़पता है।
मैं आसा करता हूँ की आपको Gautam Buddha Quotes in Hindi बहुत पसंद आई होंगी अगर आप इसे अपने जीवन में सक्सेस पाना चाहते हैं तो ये के विचार बहुत मदद करेंगे।
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